________________
लघ्वर्हन्नीति
कार्य पड़ने पर, अन्य किसी प्रकार से धन न प्राप्त होने पर ऋणदाता से ऋण ग्रहण करना चाहिए। __ प्रतिमासं मिषं दद्यात् वृद्धौ दुःखं महद्भवेत्।
पुनश्च नियते काले देयात्स्वं सोऽधमर्णकः॥४॥ ऋण लेने के पश्चात् प्रत्येक महीने ब्याज देना चाहिए, (ब्याज न देने से उसमें) वृद्धि होने पर महान् दुःख होता है और पुनः निश्चित किये गये समय में उस मूल धन को ऋण दाता को लौटा देना चाहिए।
काले व्यतीते नियते ह्यत्तमर्णेन याचितो।
अपि नो दद्यात्तदा ऋक्थी राजानं स्वं निवेदयेत्॥५॥ नियत काल व्यतीत हो जाने पर ऋणदाता द्वारा माँगने पर भी यदि (ऋणी) धन वापस नहीं दे तब ऋणदाता धन के लिए राजा से निवेदन करे।
(वृ०) धनी कया रीत्या द्रव्यं देयात् - धनी किस रीति से धन दे -
अर्थी स्वनामयुक्लेखपत्रं प्रत्यर्थिनः पुरा। स्वसाक्षिपितृपैतामहादिनामयुतं स्फुटम्॥६॥ लेखयित्वा धनी देयाद्रजतानि यथाविधि।
समिषं सप्रतिज्ञं च मिषं भिन्नं च वर्णशः॥७॥ वादी (धनवान् पुरुष) अपने नाम के लेख से युक्त पत्र में प्रतिवादी (ऋण लेने वाले के समक्ष) साक्षी, पिता, पितामह आदि के नाम स्पष्ट लिखवाकर विधि के अनुसार ब्याज सहित रजत मुद्रायें (धन उधार) दे। वर्ण के अनुसार ब्याज की दर भिन्न होती है। तथाहि
ब्राह्मणक्षत्रविटशूद्रान् शुल्कलोभेन चेद्धनी। देयाद्रौप्यान् लेखरीत्या द्वित्रिवेदेषु सम्मितम्॥८॥ मिषं वृद्धितया ग्राह्यं प्रतिमासं प्रतिज्ञया। पुनश्चतुर्विधा प्रोक्ता सा वृद्धिः शक्त्यपेक्षया॥९॥ चक्रवृद्धिः स्मृता चाद्या कालिका कारिता तथा।
कायिका चेति विज्ञेया सर्वसंपत्प्रवर्द्धनी॥१०॥ ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र को धनवान् ब्याज के लोभ से क्रमशः दो,