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व्यवहारविधिप्रकरणम्
हीनता पञ्चधा स्यात् तथा हि - हीनता पाँच प्रकार की होती है, उदाहरणार्थ - निरुत्तरः क्रियाद्विष्टो नोपस्थातान्यदुत्तरः।
आहूतः प्रपलायेत भवेद्धीनस्तु पञ्चधा॥३६॥ १. निरुत्तर २. क्रियाद्विष्ट, ३. नोपस्थाता, ४. अन्यदुत्तर और ५. आहूत पलायन - ये पाँच प्रकार के हीन होते हैं।
पृष्टे सति किञ्चिदपि न वदति स निरुत्तरः। पूछने पर कुछ भी उत्तर न दे वह निरुत्तर है। लेखनक्रिया चातुर्येणान्यथा लिखन् क्रियाद्विष्टः। .. लेखनक्रिया में चतुराई से तथ्य के विपरीत लिखना क्रियाद्विष्ट है। उत्तरे पृष्टे प्रकृताच्चलेत् स नोपस्थाता। उत्तर पूछने पर तथ्य से हट जाना नोपस्थाता है। पृष्टे सत्यन्यथा वदेत् सोन्यदुत्तरः। पूछने पर तथ्य के विरुद्ध बोलना अन्यदुत्तर है। आहूते सति पलायेत् स पञ्चमः। बुलाने पर भाग जाना आहूत पलायन पञ्चम प्रकार की पक्षहीनता है।
पुनश्चाधिकारी तल्लेखं प्रत्यर्थिने निवेदयेत्। प्रत्यर्थ्यपि च तल्लेखं वाचयित्वोत्तरं लिखेत्।
सत्यं चेत्सिद्धिमाप्नोति विपरीतमथोऽन्यथा॥३७॥ पुनः अधिकारी उस लेख (वादी के प्रत्युत्तर) को प्रतिवादी को निवेदन करे। तत्पश्चात् प्रतिवादी भी उस लेख को पढ़कर उत्तर लिखे। यदि सत्य हो तो सिद्धि प्राप्त होती है। (वादी का समाधान निकल आता है, विपरीत होने पर वाद खोटा सिद्ध हो जाता है।
(वृ०) ततोऽधिकारी पत्रचतुष्टयं गृहीत्वा प्राड्विवाकाने स्थापयेत् स च सभ्यैः सह विविच्य उभौ प्रति साक्ष्यादिसाधननिर्देशं कुर्यात्।
तत्पश्चात् अधिकारी चारों पत्रों को लेकर न्यायाधीश के समक्ष रखे और वह सभासदों के साथ विवेचन कर वादी-प्रतिवादी दोनों पक्षों के प्रति साक्ष्यादि साधनों का निर्देश करे।
तत्र सभ्याः कीदृशाः कियन्तो भवन्ति इत्याह -