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व्यवहारविधिप्रकरणम्
योग्य प्रकृति वाला, स्पष्ट, संक्षिप्त, उत्तम शब्द, अपने एवं प्रतिवादी के नाम, दावा सिद्ध करने योग्य प्रमाणों की संख्या, देश और राजा के नाम से युक्त हो तो वह योग्य (आवेदन) कहा जाता है। __ (वृ०) स्फुटोऽर्थः। जङ्गमविषयिकव्यवहारे त्वियं रीतिः, स्थावरविषयाभियोगे तु -
अर्थ स्पष्ट है। चल सम्पत्ति विषयक व्यवहार में आवेदन की यह (उपरोक्त) पद्धति है। अचल सम्पत्ति विषयक व्यवहार में आवेदन की यह (अधोलिखित) पद्धति है -
देशस्थानाख्यजातिस्वसन्निवेशप्रमाणयुक् । पितामहस्वपितानुजज्येष्ठाद्यभिधान्वितम् ॥१४॥ राजमुद्राङ्कितं पत्रं स्थावरे श्राव्यमुच्यते।
अन्यथा तु वादिविज्ञप्तिर्न श्रोतव्याधिकारिणा॥१५॥ देश, ग्राम, जाति, अपने सन्निवेश (वास स्थान का नाम, कुटीर) के प्रमाण सहित, अपने पितामह, अपने पिता, कनिष्ठ भाई, ज्येष्ठ भाई आदि के नाम से युक्त, राजा की मुद्रा (मुहर) से अङ्कित आवेदन अचल सम्पत्ति के वाद में (अधिकारियों) द्वारा) सुनने योग्य है, नहीं तो वादी का आवेदन अधिकारियों द्वारा सुनने योग्य नहीं है। ___ (वृ०) तत्र देशो मध्यदेशो वा द्रविडाङ्गबङ्गादयः, स्थानं वाराणस्यादि, जातिः क्षत्रियादयः, सन्निवेशः पूर्वापरदक्षिणोत्तरविभागावच्छिन्नः, प्रमाणं दशरज्जुमितमायतं बाणरज्जुमितविस्तृतं, पितृपितामहादिनामयुतं, क्षेत्रं यवक्षेत्रं वा शालिक्षेत्रं, इत्येतद्रीत्या लिखिता विज्ञप्तिः श्रोतव्या अन्यथा न पक्षाभासत्वात्
देश अर्थात् मध्यदेश या द्रविड़, अङ्ग, बङ्ग आदि देश, स्थान वाराणसी आदि, जाति क्षत्रिय आदि, सन्निवेश पूरब-पश्चिम, दक्षिण-उत्तर दिशा की मर्यादा, प्रमाण दस रज्जु लम्बा, पाँच रज्जु चौड़ा, पिता, पितामह आदि के नाम से युक्त, क्षेत्र यव आदि का क्षेत्र अथवा शालि का क्षेत्र, इस रीति से लिखित विज्ञप्ति सुननी चाहिये, इससे भिन्न पक्षाभास होने के कारण नहीं सुननी चाहिए।
(वृ०) के पक्षाभास इत्याह - पक्षाभास क्या है इसका कथन -
असाध्यमप्रसिद्धं च विरुद्धं निष्प्रयोजनम्। निरर्थकं निराबाधं पक्षाभासं विवर्जयेत्॥१६॥