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लघ्वर्हन्नीति
वृद्धं बहुश्रुतं बालं ब्राह्मणं गुर्विणीं गुरुम्। मातरं पितरं चैव प्रवक्तारं तपस्विनम्॥३१॥
आचार्य पाठकं चापि गांच घ्नन्तं हि घातयेत्। न हि स बहुदोषी स्याद्दण्डा.ऽपि च नो भवेत्॥३२॥
वृद्ध, विज्ञ पुरुष, शिशु, ब्राह्मण, गुरुपत्नी, गुरु, माता-पिता, उपदेशक, तपस्वी, आचार्य, पाठक तथा गाय का वध करने वाले का निश्चय ही वध करना चाहिये। ऐसा करने वाला वह बहुत दोषी नहीं होता और दण्ड के योग्य भी नहीं होता।
धनापहः शस्त्रपाणिः वह्निदो विषदस्तथा। भार्यातिक्रमकारी च क्षेत्रहृद्दारहत्तथा॥३३॥ पिशनो रन्ध्रदर्शी च प्रोद्यतास्त्रश्च गर्भापहा।
घातेऽप्येषां न दण्डःस्यादेते स्युराततायिनः॥३४॥ इत्येवं दण्डनीतीनां विचारस्त्वत्र वर्णितः। विशेषतोऽपि यथास्थानं वर्णयिष्ये यथाश्रुतम्॥३५॥ धन का हरण करने वाले, हाथ में शस्त्र लेकर (वध करने के लिए तत्पर), आग लगाने वाले, विष देने वाले, पत्नी की उपेक्षा करने वाले, खेत तथा स्त्री का हरण करने वाले, पिशुन (भेदिया या द्रोही), (शत्रु को) कमजोरी बताने वाले, अस्त्र चमकाने वाले और गर्भ नष्ट करने वाले आततायी कहे जाते हैं - इनका वध करने वाले को दण्ड नहीं देना चाहिए। इस प्रकार दण्डनीति का विचार यहाँ निरूपित किया गया। श्रुत के अनुसार विशेष रूप से इसका यथास्थान वर्णन करूँगा।
इत्याचार्य श्रीहेमचन्द्रविरचिते चौलुक्यवंशभूषणकुमारपालशुश्रूषिते लघ्वर्हन्नीतिशास्त्र युद्धनीतिदण्डनीतिवर्णनो नाम द्वितीयोऽधिकारः।२।
यह आचार्य श्री हेमचन्द्र द्वारा विरचित चौलुक्यवंश के भूषण राजा कुमारपाल द्वारा सेवित लघु-अर्हन्नीति नामक शास्त्र में युद्धनीति- दण्डनीतिवर्णन शीर्षक द्वितीय अधिकार है।
॥ इति दण्डनीतिप्रकरणम्॥
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१. २. ३.
०पाद्वकं भ १, ०पाठक भ २, प२॥ गर्भव्हा भ १, भ २, प १, गर्भहा प.२।। पातेयेषां भ १, भ २, प १, प२॥