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लघ्वर्हन्नीति
गुरुदेवभिदः शत्रून् चौरान् प्राणैर्वियोजयेः।' सर्वदा दण्डनीयाश्च लञ्चाग्राहिनियोगिनः॥५९॥ यथा स्युः सुस्थिताः सर्वाः प्रजाः कार्यं तथा सदा। इत्येषा भवता शिक्षा करणीया दृढात्मना॥६०॥
- इति नृपाणां नीतिशिक्षा। बिना अपने पराये के भेद-भाव के सम्पूर्ण प्रजा का पालन करना चाहिए। दुष्टों, प्रजा को पीड़ित करने वालों राज्य पाने की इच्छा वालों, गुरु और देव का नाश करने वालों, तथा शत्रुओं और चोरों का प्राणहरण करना चाहिए। रिश्वत ग्रहण करने वाले अधिकारियों को सदा दण्डित करना चाहिए। हे राजन्! आप दृढ़तापूर्वक इन (उपर्युक्त वर्णित शिक्षाओं) को धारण करें और सम्पूर्ण प्रजा जिसप्रकार सुख से रहे आपको सदा वैसा आचरण करना चाहिए।
कुलीनः कुशलो धीरो दाता सत्यसमाश्रितः। न्यायैकनिष्ठो मेधावी शूरः शास्त्रविचक्षणः॥६१॥ सर्वव्यसननिर्मुक्तो दण्डनीतिविशारदः। पुरुषान्तरविज्ञाता सत्यासत्यपराक्रमः॥२॥ कृतापराधसौदर्ये शत्रावपि समाशयः। धर्मकर्मरतो नित्यमनागतविमर्शकः॥६३॥ अत्यास्तिक्यादिमतिषु चतसृष्वपि बद्धधीः।। भक्तः षड्दर्शनेष्वेव गुरुदेवाद्युपासकः॥६४॥ नित्यमाचारनिरतः पापकर्मपराङ्मुखः। सदा विचारयेन्न्यायं क्षीरनीरविवेचनम्॥६५॥ कुलक्रमागतं मात्रं नृपयोग्यमुदीरयन्। ईदृशः पुरुषो मन्त्री जायते राज्यवृद्धिकृत्॥६६॥
- इति मन्त्रिगुणाः॥ उच्चकुल में उत्पन्न, कुशल, धीर, दानी, सत्य का आश्रय लेने वाला, न्यायप्रिय, मेधावी, वीर, शास्त्रज्ञ, समस्त व्यसनों से मुक्त, दण्डनीति वेत्ता, पुरुषों में अन्तर का विज्ञाता, सत्य-असत्य कथन में साहसी, अपराधी सहोदर हो अथवा शत्रु उनके प्रति समान दृष्टि वाला, धर्म कार्य में लीन, सदा भविष्य का चिन्तन करने वाला, आस्तिक्य आदि चार प्रकार की बुद्धियों में नैसर्गिक प्रवृत्ति वाला,
१. वियोजये प २॥