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प्रभावित हैं। वाक्पारुष्य, दण्डपारुष्य, स्तेय, साहस, स्त्रीसंग्रह जैसे विवादों के सूचीस्थल परिवर्तन में गौणता अवश्य रही है। कुछ स्थलों पर भिन्नता भी स्पष्ट है। उदाहरणतः मनु द्वारा उल्लिखित स्वामिपालविवाद को नारद और बृहस्पति ने, स्त्रीसंग्रहण व स्तेय को नारद ने, अभ्युयेत्याशुश्रूषा व प्रकीर्णक को मनु ने अपनी व्यवहार पद्धतिसूचियों में सम्मिलित नहीं किया है। प्रमुख स्मृतिकारों की यह भिन्नता अग्रिम तालिका से स्पष्ट हो जाती है-(देखे पृ० xiii)
मनु, याज्ञवल्क्य तथा नारद आदि स्मृतिकारों को छोड़कर अन्य स्मृतिकारों ने अतिपाप, महापाप (अर्थात् अपराध, उप-अपराध, अति अपराध, महापराध) आदि वर्गीकरण किया है।
चतुर्थ प्रायश्चित्त अधिकार का उल्लेख करते हुए विभिन्न प्रकार के अपराधों की गणना की है। अनेक स्मृतिकारों ने अपराधों को अपनी स्मृतियों में विकीर्ण कर दिया है। अपराधों पर सामाजिक शक्ति के प्रभाव ने आपराधिकस्तर में परिवर्तन किया है। इसमें वर्ण की प्रधानता को वरीयता मिली है। उदाहरणतः ब्राह्मण द्वारा घटित क्रिया को गौण और शूद्र द्वारा घटित वही क्रिया शूद्र का महापराध बनती थी।
उपवासाश्च पञ्चाशदेकभक्तास्तथैव च। पञ्चैव तीर्थयात्राश्च तथा सधर्मिवत्सलाः॥३॥ पञ्चपूजा जिनानां च शान्तिकापौष्टिकादयः। सङ्घभक्तिर्गुरौभक्तिर्दानानि च यथाविधि॥४॥ जिनोपवीतसंस्कारस्तथा कोशस्य वर्द्धनम्। जिनज्ञानौषधादीनां तथा च ज्ञातिभोजनम्॥५॥ इति कृत्वा तथा स्नात्वा तीर्थमृत्साजलेन च। सर्वौषधिविमिश्रेण शुद्धो जायेत मानवः॥६॥ अन्यथा ज्ञातिबाह्यत्वान्नोपवेश्यः स्वपंक्तिषु।
सहभोज्योऽपि तेन स्यात्तुल्यो ज्ञातिबहिष्कृतः॥७॥ उपरोक्त प्रायश्चित्त में अपराध की शुद्धि हेतु एकाशना, साधर्मिक वात्सल्य, जिनपूजा, सङ्घभक्ति आदि का समावेश जैन मान्यता के अनुरूप है। प्रजा-पालन
___ राजा का सर्वोपरि कर्त्तव्य - आचार्य हेमचन्द्र ने राजा के सद्गुणों और कर्त्तव्य की चर्चा करते हुये प्रजापालन को राजा का परम धर्म बताया है