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स्त्रीपुरुषधर्मप्रकरणम्
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सम (संख्या वाली) रात्रि में गर्भ धारण हो तो पुत्र और विषम (संख्या वाली) रात्रि में गर्भ धारण हो तो कन्या, वीर्य की अधिकता से पुत्र तथा रक्त की अधिकता होने से पुत्री उत्पन्न होती है।
जीवोत्पत्तेरियं भूमिोनिः प्रोक्ता हि शाश्वती।
बीजानामिव तद्वृद्धिर्भूम्याश्रयतया भवेत्॥१७॥ यह योनि जीव उत्पत्ति के लिए शाश्वत भूमि रूप है। बीजों की ही भाँति उसकी (जीव) की भी वृद्धि भूमि के आश्रय से होती है।
जायन्तेऽनेकरूपाणि यान्युप्तानि 'कृषीवलैः।
एकक्षेत्रेऽपि कालेन बीजानि स्वभावतः॥१८॥ कृषकों द्वारा एक क्षेत्र में बोये गये बीज समयानुसार अपने स्वभाव से अनेक रूपों में उत्पन्न होते हैं।
शालिगोधूममुद्गाश्चणकालसिकुलत्थका ।
यथाबीजं प्ररोहन्ति स्वपर्यायानुसारतः॥१९॥ धान, गेहूँ, मूंग, चना, अलसी, कुलत्थ आदि बीज के अनुसार अपनी-अपनी (जाति) पर्याय के अनुसार अङ्करित होते हैं।
अन्यदुप्सं जातमन्यदित्येतन्नोपपद्यते।
उप्यते येन यद्बीजं तत्तथैव प्ररोहति॥२०॥ जो बीज बोया जाता है उसी प्रकार वह अङ्करित होता है अन्य धान्य बोने पर अन्य (धान्य) उत्पन्न नहीं होता है।
तत्प्राज्ञेन विचार्यैवं धर्मशास्त्रानुसारतः।
वृद्धिकामेन वप्तव्यं न जातु परयोषिति॥२१॥ अतः बुद्धिमान द्वारा इस प्रकार विचार कर धर्मशास्त्र के अनुसार वृद्धि की कामना से बोना चाहिए, परस्त्री में कभी भी नहीं (वीर्य-वपन करना चाहिए)।
विधिना महिला सृष्टा पुत्रोत्पादनहेतवे। भर्तुः सपर्या परमो धर्मः स्त्रीणां प्रकीर्तितः॥२२॥ पतिसेवा सुतोत्पत्तिस्तद्रक्षा गृहकर्म च। स्त्रीणां कर्माणि चैतानि निर्दिष्टानि प्रधानतः॥२३॥
१. २.
कृष्टीवलै-भ २, प १, प २॥ हेतुवे भ १, भ २, प १, प २॥