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लघ्वर्हन्नीति
गण अर्थात् समुदाय के कार्य से (राजसभा में) आये हुए लोगों का शीघ्रता से कार्य सम्पन्न कर दान, सम्मान आदि द्वारा सत्कार कर राजा उन्हें भेजे। ___ (वृ०) अथ यो गणकार्यार्थ तत्समाजस्थैः प्रेरितः स्वयं वा राजपाइँ गतश्चेद्धिरण्यादिप्राप्नुयात्तदा तत् समाजमहाजनेभ्यो निवेदयेदन्यथा तस्य दण्डः स्यादित्याह
जो व्यक्ति समुदाय के कार्य से समाज के लोगों द्वारा प्रेरित किये जाने पर अथवा स्वयं राजा के पास जाने पर स्वर्ण आदि प्राप्त करे तब समाज के प्रमुख व्यक्तियों को (इसके विषय में) सूचित करे नहीं तो उसे दण्ड मिले, इसकाकथन
स्वयं समर्पणीयं तद्गणकार्यगतेन यत्।
लब्धं सो ह्यन्यथा दण्ड्यस्ततो दशगुणेन वै॥८॥ समुदाय कार्य से जो (धन) प्राप्त हो उसे स्वयं (सभा को) अर्पित कर देना चाहिए। ऐसा न करने पर उसे निश्चित रूप से उस धन का दस गुना दण्ड देना चाहिए।
(वृ०) अथ समूहकार्यचिन्तकाः कीदृशाः कार्या इत्याह -
सार्वजनिक कार्य की देखरेख करने वाले किस प्रकार के नियुक्त करने चाहिये, इसका कथन -
धर्मिणः प्रतिभायुक्ताः शुचयो लोभवर्जिताः। कार्यदक्षा निरालस्या' बहुशास्त्रविशारदाः॥९॥ कुलशुद्धाः सर्वमान्याः कार्यचिन्तासमाहिताः।
माननीयं वचस्तेषां सर्वैस्तद्व्यूहसंस्थितैः॥१०॥ धर्मनिष्ठ, प्रतिभाशाली, पवित्र, लोभरहित, कार्यकुशल, आलस्यरहित, बहुशास्त्र वेत्ता, शुद्ध कुल वाला, सर्वमान्य और कार्य की चिन्ता करने वाला व्यक्ति (सभा का कार्यभार ग्रहण करे।) उन सभी सभासदों को (गुणवान) कार्यभारी के वचनों का समादर करना चाहिए।
वणिजां श्रेणिपाषण्डिप्रभृतीनामयं विधिः।
नृपो रक्षेच्च तद्भेदं पूर्वरीतिं प्रचालयेत्॥११॥ व्यापारियों, शिल्पकार समूहों, पाखण्डियों आदि की यह विधि है। इसलिए राजा को उनके भेदों की रक्षा करनी चाहिए और पूर्व परम्परा का पालन करना।
चाहिए। --- १. ०लभ्यां प १, ०लभ्याः भ १, भ २, प २॥