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वाक्पारुष्यप्रकरणम्
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प्रकार (अर्थात् काने को काना, अन्धे को अन्धा) दोष युक्त वचन बोलता है वह तीन मुद्राओं (पणों) से दण्डित करने योग्य है।
आचार्यं पितरं बन्धुं मातरं वनितां गुरुम्। विपरीतं वदन् दण्ड्यः पणैर्युग्मशतोन्मितैः॥१७॥ आचार्य, पिता, बन्धु, माता, स्त्री तथा गुरु को विपरीत वचन बोलने वाला दो सौ मुद्राओं (पणों) के बराबर दण्ड के योग्य है।
इत्थं समासतः प्रोक्तं वाक्पारुष्यं यतो जनाः।
प्रवदेयुर्हितं तथ्यं वाक्यं प्राणिप्रियं मितम्॥१८॥ इस प्रकार संक्षेप में वाक्पारुष्य (वचन की कर्कशता) का कथन किया गया जिससे लोग हितकारी, सत्य, लोगों को प्रिय लगने वाले तथा अल्प वचन बोलें।
॥ इति वाक्पारुष्यप्रकरणम् समाप्तम्॥