________________
१५०
लघ्वर्हनीति
परोपकार में कुशल, शत्रु और मित्र के प्रति समदृष्टि रखने वाली, स्त्रियों को स्त्रियों से और पुरुषों को पुरुषों से सम्बन्धित साक्ष्य में साक्षी बनाना चाहिए।
(वृ०) रदितादीनां स्वरूपमाह - रदित आदि साक्षियों के स्वरूप का कथन -
अर्थिना स्वयमानीतो यः पत्रे प्राग् निवेश्यते।
स साक्षी रदितो ज्ञेयोऽरदितः पत्रकादृते॥३५॥ __ वह साक्षी जो वादी द्वारा स्वयं लाया गया है और पूर्व में (प्रथम) प्रतिवेदन पत्र में (साक्षी का नाम) सम्मिलित हो उसे रदित नाम का साक्षी कहा गया है और (प्रतिवेदन) पत्रक में (दिये गये नाम के) अतिरिक्त (बनाया गया साक्षी) अरदित कहा गया है।
कार्यं मुहुर्मुहुः पृष्टो कार्यसिद्ध्यर्थमेव च।
स्मार्यते चार्थिना यो वै स स्मारित इहोच्यते॥३६॥ जिसको बार-बार पूछकर (आग्रह कर) कार्य की सिद्धि के लिए साक्षी बनाया गया है और वादी द्वारा जिसको स्मरण कराया जाता है वह साक्षी ‘स्मारित' कहा जाता है।
विवाददर्शनार्थ' यः स्वयं राज्यसभास्थले।
उपकारेच्छया प्राप्तो यदृच्छागत उच्यते॥३७॥ जो उपकार की इच्छा से स्वयं राजसभा में विवाद देखने के लिए आया हुआ है वह ‘यदृच्छागत' साक्षी कहा जाता है।
प्रसङ्गादागतः साक्षी वा प्रयोजनतः स्वयम्।
प्रत्यर्थिवचनं श्रोतुमर्थिना स्थापितश्च यः॥३८॥ जो साक्षी, प्रसङ्गवश सुनने के लिए अथवा प्रयोजनवश स्वयं आ गया हो और प्रतिवादी की बातों को सुनने के लिए वादी द्वारा स्थापित किया गया हो वह वादी के कार्य को सिद्ध करने वाला 'गुप्तसाक्षी' है।
गुप्तसाक्षी स विज्ञेयोऽर्थिनः कार्यस्य सिद्धिदः। साक्ष्युक्तश्रवणाज्जातस्फुर्तिरुत्तरदायकः ॥३९॥ साक्षिसाक्षी स विज्ञेयः साक्षिणां साक्ष्यदायकः। इमे चैकादशविधाः साक्षिणः परिकीर्तिताः॥४०॥
१.
दर्शितार्थं भ १, भ २, प १।।