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क्रयेतरानुसन्तापप्रकरणम्
कपास के सूत, ऊन और मोटे धागे से निर्मित वस्त्र को धोने पर सौ पल में दस पल की वृद्धि होती है।
सूक्ष्मसूत्रैश्च निष्पन्ने वृद्धिर्हि त्रिपला भवेत् ।
मध्यमे मध्यमा ज्ञेया प्रोक्तमेतज्जिनागमे ॥ ११ ॥
पतले धागों से निर्मित वस्त्र में निश्चय ही तीन पल की वृद्धि होती है, मध्यम धागों से निर्मित वस्त्र में मध्यम वृद्धि होती है - ऐसा जिन शास्त्रों में प्ररूपित है। त्रिंशद्भागक्षयो रोमजाते च कार्मिके पुनः ।
कौशेये वल्कले तु स्यान्न वृद्धिर्न क्षयः कदा ॥ १२ ॥
(पशु-पक्षियों) के रोम और हस्तनिर्मित धागों के वस्त्रों में (सौ में) तीस भाग का ह्रास होता है, पुनः रेशमी और वल्कल वस्त्र में (धोने से ) न कभी वृद्धि होती है और न हानि होती है।
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(वृ०) चित्रयन्त्रसूत्रादिकर्मनिमिते रोमनिर्मिते च राशितस्त्रिंशद्भागक्षयः स्यात् । कौशेये भूर्जपत्रादिवल्कलनिष्पाद्ये च हानिवृद्धी न हि स्यातामिति ।
यन्त्र द्वारा सूत्रादि से निर्मित चित्र और पशु-पक्षियों के रोम से निर्मित वस्त्र में तीसवें भाग का क्षय होता है। रेशम, भोजपत्र तथा वल्कल वस्त्र में क्षय तथा वृद्धि नहीं है।
क्रयेतरानुसन्तापः
संक्षेपेणात्रसूत्रितः। यज्ज्ञानेन प्रवीणाः स्युर्जना व्यापारकर्मणि ॥ १३ ॥
क्रय-विक्रय विवाद प्रकरण यहाँ संक्षेप में क्रमबद्ध किया गया जिसके ज्ञान से लोग व्यापार कर्म में कुशल हों ।
॥ इति क्रयेतरानुसन्तापप्रकरणम्॥
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