________________
(xiv)
विधि, दोषी भृत्य को दण्ड आदि विषयों का निरूपण इस प्रकरण में किया गया
७. क्रयेतरानुसन्ताप प्रकरण
इसका शाब्दिक विश्लेषण है क्रय - खरीदना, इतर अर्थात् क्रय से भिन्न विक्रय - बेचना, अनुशय - पश्चात्ताप करना। क्रय-विक्रय के पश्चात् पश्चात्ताप अर्थात् क्रय के बाद वस्तु लौटा देना, विक्रय के बाद वस्तु न देना, क्रयविक्रयानुशय कहलाता था। चल व अचल दोनों ही प्रकार की सम्पत्ति इस विवाद का विषय होती थी। यदि ग्राहक किसी वस्तु का मूल्य देकर, क्रय करने के बाद उस वस्तु को लेना ठीक नहीं समझता, तो उसका यह आचरण क्रीतानुशय कहलाता था। यदि व्यापारी किसी द्रव्य या पण्य का मूल्य लेकर विक्रय कर देने के बाद भी खरीददार को वह द्रव्य नहीं देता, तो विक्रेता के इस आचरण को विक्रिय सम्प्रदान कहते थे।
-~-~~~क्रयेतरानुसन्ताप प्रकरण का आरम्भ भगवान श्रेयांसनाथ की स्तुति से हुआ है। इसमें क्रय और विक्रय कर क्रेता और विक्रेता अपने सौदों से क्रमशः मूल्य की अधिकता और न्यूनता तथा वस्तु से असन्तुष्ट होकर पश्चात्ताप करते हैं। इससे सम्बन्धित वस्तु-परीक्षा की अधिकतम अवधि, वस्तु वापस करने की विधि, स्वर्ण आदि धातुओं की परीक्षा जैसे विषयों पर विचार किया गया है। ८. स्वामिभृत्यविवाद प्रकरण
पशुस्वामी व पशु चरवाहे के मध्य विवाद, स्वामी व सेवक का विवाद स्वामिभृत्यविवाद प्रकरण की परिधि में आता था। इसमें भगवान वासुपूज्य की स्तुति के बाद दूसरे के खेतों को हानि पहुँचाने वाले पशु मालिक को दण्ड, गोपालक को दण्ड, गोपालक का कर्त्तव्य, गोपालक को वृत्ति, चारागाह का प्रावधान आदि विषयों पर प्रकाश डाला गया है। ९. निक्षेप प्रकरण
निक्षेप अर्थात् धरोहर, उपनिधि, अमानत आदि। मनुष्य शङ्कारहित होकर, दूसरे पर विश्वास कर, उसके पास अपनी वस्तु, द्रव्य, धरोहर के रूप में रखता था। धरोहर के रूप में रखी वस्तु निक्षेप या उपनिधि कहलाती थी। इस प्रकरण में भगवान विमलनाथ की स्तुति के बाद निक्षेप रखने के कारण, धनवान् द्वारा निक्षेप वापस न करना, निक्षेप का नष्ट होना, निक्षेप का हरण करना, साक्षियों की योग्यता, साक्षियों के प्रकार, साक्षियों के सामान्य गुण आदि विषयों पर प्रकाश डाला गया है।