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विभाजित धन को व्यय करने का तो सभी को अधिकार है ही । ननु यदि पूर्वोक्तगुणयुक्ता विधवावधूर्नस्यात्तदा श्वश्रूसत्वे तस्याः श्वसुरस्थापितद्रव्ये कियानधिकार इत्याह
लघ्वर्हन्नीति
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यदि विधवा वधू ऊपर वर्णित गुणों से युक्त न हो तो सास के रहने पर श्वसुर द्वारा अर्जित सम्पत्ति में उसका कितना अधिकार हो, इसका कथन
श्वशुरस्थापिते द्रव्ये श्वश्रूसत्त्वेऽधवा वधूः।
नाधिकारमवाप्नोति भुन्क्त्याच्छादनमन्तरा ॥१०७॥
श्वसुर द्वारा अर्जित सम्पत्ति में सास के विद्यमान रहने पर विधवा पुत्रवधुओं को भोजन एवं वस्त्र के अतिरिक्त और कोई अधिकार प्राप्त नहीं होता है। दत्तगृहादिकं सर्वं कार्यं श्वश्रूमनोनुगम् ।
करणीयं सदा वध्वा श्वश्रूर्मातृसमा यतः ॥१०८॥
सास द्वारा इच्छानुसार दिये गये सभी गृहकार्यों को वधू द्वारा किया जाना चाहिए क्योंकि सास माँ के समान है।
सपत्नीकस्य पञ्चत्वे कस्याः
( वृ०) नन्वपुत्रस्य समातृकस्य पुत्रग्रहणाधिकारोऽस्ति इत्याह
माता तथा पत्नी के जीवित रहने पर पुरुष की पुत्ररहित ही मृत्यु हो जाने पर माता तथा पत्नी में से दत्तक पुत्र ग्रहण करने का अधिकार किसका है, यह
कथन
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गृह्णीयाद्दत्तकं पुत्रं पतिवद्विधवा वधूः।
न शक्ता स्थापितुं तं च श्वश्रूर्निजपतेः पदे ॥१०९॥
विधवा पुत्रवधू पति रूप में दत्तक ग्रहण कर सकती है किन्तु सास अपने पति के रूप में दत्तक स्थापित नहीं कर सकती है।
( वृ०) ननु श्वश्रूश्वशुरहस्तगतं स्वभर्तृद्रव्यं विधवावधूर्गृहीतुं शक्ता न वेत्याह
सास और के अधिकार में गये अपने पति के धन को विधवा-वधू श्वसुर ग्रहण कर सकती है अथवा नही, यह कथन -
स्वभपार्जितं द्रव्यं श्वश्रूश्वशुरहस्तगम्।
विधवाप्तुं न शक्ता तत्स्वामिदत्ताधिपैव हि ॥ ११० ॥
अपने पति द्वारा उपार्जित जो धन सास और श्वसुर के हाथ चला गया है उस धन को प्राप्त करने की विधवा अधिकारिणी नहीं है। उसके पति द्वारा जो धन उसे दिया गया है उस धन की अधिकारिणी है।