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लघ्वर्हन्नीति
अनुजानां लघुत्वेऽनुमतौ चाप्यग्रजो धनम्।
सर्वं गृह्णाति तत्पैत्र्यं तदा तान् पालयेत्सदा॥२०॥ यदि (अन्य) भाइयों के लघु (अल्पवयस्क) होने और उनकी अनुमति होने पर पिता से प्राप्त समस्त धन को ज्येष्ठ भ्राता ग्रहण करता है तब उसे सदा उन (कनिष्ठ भाइयों) का पालन करना चाहिये।
विभक्तानविभक्तान्वै भ्रातृन् ज्येष्ठः पितेव सः।
पालयेत्तेऽपि तं ज्येष्ठं सेवन्ते पितरं यथा॥२१॥ विभाजन हुआ हो अथवा नहीं हुआ हो ज्येष्ठ भ्राता पिता के समान ही कनिष्ठ भाइयों का पालन करे और वे कनिष्ठ भाई भी जैसे पिता की सेवा करते हैं उसकी करें।
(वृ०) अत एव कैश्चिदुक्तम् - इसलिए किसी के द्वारा कहा गया है -
पूर्वजेन तु पुत्रेण अपुत्रो पुत्रवान्भवेत्।
ततो न देयः सोऽन्यस्मै कुटुम्बाधिपतिर्यतः॥२२॥ पूर्व (प्रथम) में उत्पन्न होने वाले पुत्र से अपुत्रवान् व्यक्ति पुत्र वाला होता है। इस कारण उस (ज्येष्ठ पुत्र को) दूसरे को नहीं देना चाहिए क्योंकि वह परिवार का स्वामी है।
ज्येष्ठ एव हि गृह्णीयात्पैत्र्यं धनमशेषतः।
शेषास्तदनुसारित्वं भजेयुः पितरं यथा॥२३॥ (कुछ का अभिमत है) ज्येष्ठ पुत्र ही पिता के सम्पूर्ण धन को ग्रहण करे और शेष उसकी आज्ञा में (उसी प्रकार) रहें जिसप्रकार पिता की आज्ञा (में रहते हैं)। ___ (वृ०) ननु विभाग कालोत्तरजातकन्याविवाहः पित्रोः प्रेतयोः कैः कार्य इत्याह
विभाजन के पश्चात् उत्पन्न कन्या का विवाह और माता-पिता का मरणोपरान्त संस्कार किसके द्वारा किया जाना चाहिए, इसका कथन -
एकानेका च चेत्कन्या पित्रोरूज़ स्थिता तदा।
स्वांशात्पुत्रैस्तुरीयांशं दत्वावश्यं विवाह्यते॥२४॥ यदि पिता की मृत्यु हो जाने के पश्चात् एक या कई कन्यायें (अविवाहित) हों तो पुत्रों द्वारा अपने हिस्से का चतुर्थ अंश देकर अवश्य ही (उनका) विवाह करना चाहिए।