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________________ (६०) ॥ गाथा ३ जीना बुटा शब्दोना अर्थ ॥ राग-राग कर्म-कर्म अशक्ता-अशक्त अहि-सर्प वैशप्तम्-उष्ट, उख- अस्थि -ई छु गरल-गल फेर दायक घिधिकार पमो अत्रातः=मूळ पामेलो तत्-ते मेमने अकार्ष का वक्तुम् कहेवाने पचन-गुप्त यत्जे | अपि-पण | पापिनः पापी रागादि गरलाऽघ्रातो, ऽकार्ष यत्कर्मवैशसम्; तत्त्कुमप्यशक्तोस्मि, धिङ्मे प्रचन्न पापिनः३॥ ___ शब्दार्थः-रागरूपी साना फेरथी मूळ पामेला में जे उष्ट कर्म कयाँ ते कहेवाने पण हुं अस. मर्थ ९, मने गुप्त पापीने धिक्कार पमो ॥ ३ ॥ ॥ गाथा ४ थीना बुटा शब्दोना अर्थ ॥ दाणं-दणमात्र; थो- कमी दमावान । कारितः करायो मीवारमा मोहाथै-मोहादिए कपि चापलम् वानरसक्तः=लुब्धः आसक्त क्रीम्या-क्रीमाबके चेष्टा; वांदराना मुक्तः=मुक्त छुटो | श्व-जेम जेवी चपलता क्रुद्धः क्रोधी | अहं क्षणं सक्तः दाणं मुक्तः,दणं क्रुक्षः दणंदमी,
SR No.022028
Book TitleRatnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya
PublisherBalabhai Kakalbhai
Publication Year1909
Total Pages64
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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