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(५७) परिटतैः कार्य हहा कर्ममिः ॥१०॥ ___ शब्दार्थः-पलवारमां तो मारो राग फुरे बे, वली क्षणवारमां तो वैराग्य थ आवे , कणवारमा तो मने क्षेत्र थर जाय डे वलो थोमोवारमा मने मैत्री. चाव उपजे , कणवारमा रंकपणुं फुःख देडे, कण वारमा दरख पण मने पीमा करे डे (उत्पन्न थाय बे.) तेथी मांकमा जेवा अटकचालां, नीच अने निर्दय, घेराएलां कर्मोवके सयुः ॥ १० ॥
श्री हेमचंद्र आचार्य कृत
. श्रात्मगहीस्तव.. ॥ गाया १ लीना बुटा शब्दना अर्थ ॥ त्व तमारा ईत आय की अहींथी | नाथ हे नाथ ! मत-मतरूपो शनरसः शांतरसना परमानंद-नत्कृष्ट अमृतपानोबा-अ. नर्मयः तरंगो
आनंदनी मृतपानथी नत्पन्न पराणयंतिधमाकेजे संपदं संपत्ति थएला
मां-मने त्वन्मतामृतपानोबा, इतः शमरसोर्मयः; पराणयंति मां नाथ, परमानंद संपदम् ॥ १॥