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(४) आगल नोलेजावे कांश्क विनंती करूंबु. ॥॥
व्याख्या:-जगत् त्रय के स्वर्ग मृत्यु अने पातालरूप, त्रण भुवन तेना आधार के स्थानभूत एवा हे जगत्रयाधार ! कृपा के दया तेने विषे अवतार के उपदेशद्वारे करी जेनो प्रवेश बे; एवा हे कृपावतार, उार के छःखेन वारयतीति उरवार एटले निवारण करवा माटे अशक्य एवो जे संसाररूप विकार के रोग, वियोग, जरा मरणादि लक्षण-तेने विषे चिकित्साकारीपणाए करीने वैद्य सरखा हे उार संसार विकार वैद्य, वोत के गयेली ने राग के रागदशा जेनी, अने श्री के मोद लक्ष्मी तेणे सहित एवा हे श्री वीतराग ! विज्ञ के हे चतुर, हे प्रनो ! त्वयि के तारे विषे अर्थात् तारी पासे हुं मुग्ध नावात् के विशेष झान विकलपणाने लीधे मुग्ध छु, ते हुँ किंचित् के कांक विझपयामि के0 विज्ञप्ति करूं छु. ॥२॥
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॥ गाथा ३ जीना बुटा शब्दोना अर्थ, ॥ कि शुं
बालः बालक बासलीला कलिता बालकनी पित्रोः मावापनी क्रीमाए सहित
पुरः-आगल न-नथी
जल्पति बोले ले