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________________ P -RIES (३७) नूत-गयेलो जवत्रयी-नवनुंत्रिक; त्रालय नद्भवत्-चालतो इश-हे इश; हे प्रभु! नावि-आवतो पूर्वे नवे ऽकारि मया न पुण्य, मागामि जन्मन्यपि नो करिष्ये; यदीदृशो मम तेन नष्टा, जूतोन्नयनावि नवत्रयीश ॥ १३ ॥ ____ शब्दार्थः-- पूर्व जन्ममां में सुकृत न कर्यु, आगल थनारा जन्ममां पण नहीं करीश; जो आवा प्रकारनो हुं हुं तो हे प्रजु ! ते कारण माटे मारा त्रण नव, गयेलो चालतो अने श्रावतो नाश पाम्या ॥२३॥ व्याख्याः -हे नेताः मया पूर्वेलवे पुण्यं नाकारि के0 में पूर्व जन्मने विषे सुकृत संपादन कर्यु नहि. ए केम समजवामां आव्युं ? तो के तेवू सौख्य प्राप्त थयुं नथी ए उपरथी समजाय जे. तेमज आगामिजन्मन्यपि के आगल प्राप्त थनारा जन्मने विषे पण, नोकरिष्ये के पुख्य संपादन करनार नथी. ए केम समजवामां आव्युं ? तो के, वर्तमान जन्मना अनुमाने करीने. वर्तमान जन्मने विषे तो दत्तं न दानं इत्यादिके करीने पुण्य संपादन कर्यु नहि, ए स्पष्टज प्रतिपादन कयु है. आ जन्मन (वर्ष पुण्य कयु नाह,
SR No.022028
Book TitleRatnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya
PublisherBalabhai Kakalbhai
Publication Year1909
Total Pages64
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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