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(३५) कृत्यं मया सुधा हारितमेव जन्नः ॥२१॥
शब्दार्थः-सारां वृत ( पालवा ) वमे ढुं सा. धुना हृदयमा रह्यो नहीं, परोपकारथी में यश पेदा 'कयों नहीं, जीर्णोधारादि ( सारां) काम न कर्या, में तो व्यर्थज जन्म गमाव्यो ॥१॥ ___ व्याख्याः-हे जगत्मनो ! में साधुवृत्तात् फे उत्तम प्रकारना
आचारे करीने साधो हदि न स्थितं के साधुना हृदयने विषे रहेगण कयु नहि एटले जे सदाचार युक्त होय, ते साधुने प्रियं थाय जे तेवो हूं थयो नहि. एवो लावार्थ-तेमज में परोपकारान्न यशोजित के परोपकारे करीने प्रख्याति रूप यश संपादन कर्यो नहि तेमन में तीर्थो शरणादि कृत्यं न कृतं के पतन पामेलां जिनमंदिरोन जे पुनः प्रतिष्टान रूप नहरण ते जेमां आदि एयु सत्कार्य कयु नहि ते कारण माटे में मारो जन्म, मुधैव अहारि के व्यर्थज गुमाव्यो ॥ ११ ॥
॥ गाथा १२ मीना बुटा शब्दना अर्थ ॥ वैराग्यरंग-राग्यनी बार.ना ! गुरूदितेषु-गुरूए कहेला उपन= (थई)
देश (सांजलवा ) मां न-अहि
। उर्जनानां उर्जनोना