________________
(१७) पामता, मारी जुवानी जती रही पण विषयनी श्र. निलाषा जती नथी, उसम करवा में यत्न कयों पण धर्मने विषे में श्रादर न कर्यो ।। १६ ॥
हे स्वामिन् ! मे के मारी महामोह विम्बना के प्रबल जे मोह तेनी जे विमंबना के कदर्थना ते केटली कहेवी ? ते केवी? तोके मारं आयुः के आयुष्य, ते आशु गलति के शीघ्र नाश पामे के; परंतु पापबुधिन के जे पापपरिणाम ते नाश पामता नथी. तेमज मारुं वयः गतं के तारुण्य लक्षण जे वय, ते अतिक्रांत थयुं, परंतु विषयानिलाषः न, के शब्द, रूप, गंध, रस, स्पर्शरूप जे विषय, तेननो अभिलाषः के इहा, ते हजी पण नाश पामी नथी. अने मारो यत्नः के आदर, ते नैषज्यविधौ केशरीर निरोगी होवू, एतदर्थे औषधादिकोना विधान विषे थयो। धर्मे न के सुकृतने विषे थयो नहि ॥ १६ ॥
॥ गाथा १७ मीना बुटा शब्दाना अर्थ ॥ नम्नथी
पापं पाप आत्मा-जीव चेतन
मया में न नथी
विटानां नास्तिकोनी; उगलोपुण्यं-पुण्य
कोनी अव अवतार
कटु-कडवी; कर्कश ..