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(१५) नाजी, केम, श्रने ढलतां अवयववालास्त्रीउना विलास चिंतव्या ॥ १३॥ ____ व्याख्याः -हे जगदीस ! मुढधिया के जेनी बुद्धि मुढ ने एवो हुँ, तेणे दृग्लक्ष्यगतं के दृष्टि गोचर भूत एवो जवंत के चिं. तामणि सरखो जे तुं-तेने विमुच्य के परित्याग करीने हृदंतः के पोताना हृदयने विषे सुदृशां विलासाः के चंचलत्वे करी जेननी दृष्टि सुंदर दे एवी हरिणादि स्त्रीनना हावलावादिक वित्रमज, ध्याताः के चिंतन को. ते विलास केवा? तो के-कटादवदोज गनीर नाजी कटी तटीयाः के नेत्र कटाद, स्तन, गंजीर एवो नानी, अने कटी प्रदेश-इत्यादिक अवयवोए मोहनशील. चिंतामणि रत्न सरखो एवो जे तुं-तेनो त्याग करीने हुं पापमय विषयोने विषे आसक्त थयो. ॥ १३ ॥ ॥ गाथा १४ मीना बुटा शब्दोना अर्थ. ॥ लोलेवणा-चपल नेत्रवाली | य=जे स्त्रीननां
मानसे-मनमां; चित्तमा वक्रमों
रागलवः रागनो अंश; रातानिरीक्षणेन-निहालीने जो- शनो अंश वायी
विसमा लाग्यो चाट्यो .