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________________ ( १५) कियत केटलु स्वं-पोतार्नु ब्रुवे कहुं ईश-ह स्वामिन् ! हास्यकरं-हास्यकारक वैराग्यरंगः परवंचनाय, धर्मोपदेशो जनरंजनाय; वादाय विद्याध्ययनं च मेऽनृत्, किय दुवे हास्यकरं स्वमीश ॥ ५॥ शब्दार्थः--वैराग्यनो रंग बीजाने उगवाने अथ थयो, धर्मनो उपदेश लोकोने खुशी करवाने अर्थे थयो, अने विद्यानो श्रन्यास वाद करवाने अर्थे थयो तो हे स्वामिन् ! मारुं हास्यकारक एवं (स्वरूप) हुं केटर्बु कहुं ॥ ए॥ व्याख्या:-हे इश के० हे स्वामिन ! हुं खंहास्यकरं कियब्रुवे के भारां हास्यकारक एवां कर्मने केटलां कहुं ? जो के सर्व कर्म कहवा माटे शक्य नथी, तथापि कांक कहुं छु. मे वैराग्य रंग: परवंचनायाभूत् के मारा वैराग्यनो जे रंग ते, परवंचनाय के अन्यना प्रतारण एटले उगवा माटे थयो; अने मे धर्मोपदेशः जन रंजनायभूत् के0 मे करेलु दानादिनुं जे कथन ते लोकोना रंजनने
SR No.022028
Book TitleRatnakarsuri Krut Panchvisi Jinprabhsuri Krut Aatmnindashtak Hemchandracharya Krut Aatmgarhastava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakarsuri, Jinprabhsuri, Hemchandracharya
PublisherBalabhai Kakalbhai
Publication Year1909
Total Pages64
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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