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- २४०] वधविषयाणामेव वनिवृत्तियुक्ता इत्येतन्निराकरणम्
१४१ नियमभावे अविषया' वनिवृत्तिरिति । कालान्तरहननेऽपि नियमतः संभवेऽभ्युपगम्यमाने । किं तया निवृत्त्या ? न किंचिदित्यर्थः। कुत इत्याह-नियमभङ्गात् संभव एव सति निवृत्त्यभ्युपगमः, संभवश्च कालान्तरहननमेवेति नियमभङ्ग इति ॥२३८॥ चरमविकल्पद्वयाभिधित्सयाह
अवहे वि नो पमाणं सुठ्ठयरं अविसओ य विसओ से ।
सत्ती उ कज्जगम्मा सइ तंमि किं पुणो तीए ॥२३९।। अवधेऽपि न प्रमाणं यद्यवधः संभवः इत्यत्रापि प्रमाणं न ज्ञायते एतेषामस्मादवध इति । सुष्ठुतरं अतितराम् । अविषयश्च विषयः सेतस्या निवृत्तेः। अविषयत्वं तु तेषां वधासंभवात्, अवधस्यैव, संभवत्वात्, अस्मिश्च सति निवृत्त्यभ्युपगमादिति । शक्तिस्तु कार्यगम्या वधशक्तिरपि संभवो न युज्यते, यतोऽसौ कार्यगम्यैवेति न वधमन्तरेण ज्ञायते । सति च तस्मिन्वधे किं पुनस्तया निवृत्त्या, तस्य संपादितत्वादेवेति ॥२३९॥ संभवमधिकृत्य पक्षान्तरमाह
जज्जाईओ अ हओ तज्जाईएसु संभवो तस्स ।
तेसु सफला निवित्ती न जुत्तमेयं पि वभिचारा ॥२४०॥ क्या रह जाता है ? कुछ भी नहीं। इससे यदि सम्भवका अर्थ कालान्तरमें उस वध्य प्राणोका वध ही वादोको अभीष्ट हो तो वह भो उचित न होगा, क्योंकि कालान्तरमें वधके करनेपर पूर्व में जो उस वधका नियम किया गया था वह नियमसे भंग हो जानेवाला है, क्योंकि वादीने भविष्यमें किये जानेवाले उस वधको ही सम्भव माना है ।।२३८||
आगे अन्तिम दो विकल्पोंमें भी दोष दिखलाये जाते हैं
तीसरे विकल्पभूत अवधमें कोई प्रमाण नहीं है, इस प्रकार जो वधका अतिशय अविषय है वही उस वधको निवृत्तिका विषय ठहरता है। तब सम्भवसे यदि शक्तिको ग्रहण किया जाता है तो वह शक्ति तो कार्यसे जानी जा सकतो है, इस प्रकार कार्य हो जानेपर उस निवत्तिका प्रयोजन ही क्या रह जाता है ? कुछ भी नहीं ।
विवेचन-तीसरे विकल्पभूत सम्भवका अर्थ यदि अवध किया जाता है तो इसमें 'ये प्राणी अमुक प्राणीसे अवध्य हैं' इसका ज्ञान कैसे हो सकता है ? वह अशक्य है। इसके अतिरिक्त जिसके द्वारा जिनका वध नहीं हो सकता है उनके अवधको सम्भव स्वीकार करते हुए तदनुसार जो वधके विषय नहीं हैं वे हो उस वनिवृत्तिके विषय ठहरते हैं। इस प्रकार इस तीसरे विकल्पमें अविषयको विषय करनेके कारण वह वनिवृत्ति निष्फल ही सिद्ध होती है। तब अन्तिम विकल्पका आश्रय लेकर यदि सम्भव शब्दसे वधशक्तिको ग्रहण किया जाता है तो उस वधशक्तिका परिचय वधरूप कार्यसे ही हो सकता है। इस प्रकार उस शक्तिको ज्ञात करने के लिए यदि वध ही कर दिया जाता है तो वैसी स्थितिमें उस वधकी निवत्तिसे कुछ प्रयोजन सिद्ध होनेवाला नहीं है। इस प्रकार विचार करनेपर जब 'सम्भव' का अर्थ ही घटित नहीं होता तब 'जिन प्राणियोंका वध सम्भव है उन्हींके वधकी निवृत्ति कराना चाहिए' यह जो वादीके द्वारा कहा गया है वह असंगत ही ठहरता है ।।२३७-२३९।।
इस प्रकार उक्त चार विकल्पोंमें सम्भवके घटित न होनेपर वादीके द्वारा स्थापित सम्भवके अन्य पक्षको दिखलाते हुए उसका निराकरण किया जाता है--- १. अ क्रियाइमभावे अपिविषया।