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१३८ श्रावकप्रज्ञप्तिः
[२३३यस्मादसौ वधपरिणामो अज्ञानाद्यपगमेन हेतुना न भवति, सति त्वज्ञानादौ भवत्येव, वस्तुतस्तस्यैव तद्रूपत्वात् । तस्मात्तदभावार्थी वधपरिणामाभावार्थी । ज्ञानादिषु सदा यतेत, तत्प्रतिपक्षत्वात् इति ॥२३२॥ एवं वस्तुस्थितिमभिधायाधुना परोपन्यस्तहेतोरनेकान्तिकत्वमुद्भावयति
बहुतरकम्मोवक्कमभावो वेगंतिओ न जं केइ ।
बाला वि य थोवाऊ हवंति' वुड्ढा.वि दीहाऊ ॥२३३॥ बहुतरकर्मोपक्रमभावोऽपि बालादि-वृद्धादिष्वेकान्तिको न । यद्यस्मात्केचन बाला अपि . स्तोकायुषो भवन्ति वृद्धा अपि दीर्घायुषस्तथा लोके दर्शनादिति ॥२३३॥
तम्हा सव्वेसि चिय वहमि पावं अपावभावहिं ।
भणियमहिगाइभावो परिणामविसेसओ पायं ॥२३४॥ यस्मादेवं तस्मात् । सर्वेषामेव बालादीनां वधे पापमपापभावैर्वीतरागैर्भणितम् । अधिकादिभावस्तस्य पाप्मनः परिणामविशेषतः प्रायो भणित इति वर्तते। प्रायोग्रहणं तपस्वीतरादिभेदसंग्रहार्थमिति ॥२३४॥
चूंकि जीववधका वह परिणाम उक्त अज्ञानादिके अभावसे नहीं होता है-किन्तु उक्त अज्ञानादिके रहते हुए ही होता है, इसीलिए जो जीववधके परिणामको नहीं चाहता है उसे निरन्तर ज्ञान आदि ( समीचीन शास्त्रके अध्ययन आदि ) में प्रयत्नशील रहना चाहिए ।।२३२।।
आगे वादोके द्वारा निर्दिष्ट हेतुकी अनैकान्तिकता को प्रकट करते हैं
बहुतर कर्मका उपक्रमपना ऐकान्तिक नहीं है-वह बाल आदिमें बहुतर और वृद्ध आदिमें हीनतर हो, ऐसा सर्वथा नियम नहीं है, क्योंकि कोई-कोई बालक भी अल्पायु होते हैं और वृद्ध भी दीर्घायु होते हैं।
विवेचन-वादीने पूर्व ( २२१ )में यह कहा था कि बाल आदिके वधमें बहुतर कर्मका उपक्रम होनेसे अधिक पाप और वृद्ध आदिके वधमें वह होन होता है। इसको दूषित करते हुए यहां यह कहा गया है कि बाल आदिके वधमें बहुतर कर्मका ही उपक्रम हो, ऐसा ऐकान्तिक नियम नहीं है। कारण इसका यह है कि कोई बालक भी अल्पायु और वृद्ध भी दोर्घायु देखे जाते हैं। अतः बाल आदिके वधमें अधिक पापको सिद्धि में जो बहुतर कर्मका उपक्रम रूप हेतु वादोके द्वारा प्रयुक्त किया गया था वह विपक्षमें भी सम्भव होनेसे अनैकान्तिक दोषसे दूषित है ।।२३३॥
अब प्रकृतवादका उपसंहार किया जाता है
इसलिए पाप परिणामसे रहित ( वीतराग) जिनदेवके द्वारा बाल व वृद्ध आदि सभी जीवोंके वधमें पाप कहा गया है। उस पापको अधिकता आदि प्रायः परिणाम विशेषके अनुसार जानना चाहिए।
विवेचन-बाल आदि वधमें कर्मका अधिक उपक्रम होनेसे अधिक और इसके विपरीत वृद्ध आदिके वधमें अल्प पाप होता है, इस मान्यताका निराकरण करते हुए यह कहा जा चुका है कि कमंका बन्ध वधकर्ताके परिणाम विशेषके अनुसार होता है, न कि बाल-वृद्धादि अवस्था विशेषके आधारपर। इन सबका उपसंहार करते हुए यह कहा गया है कि वीतराग जिनेन्द्रने सभी जीवोंके वधमें पाप बतलाया है। इसमें जो अधिकता और हीनता होतो है वह वधकर्ताके १. अ थोआउ भवंति । २. म 'भणित इति वर्तते प्रायो' एतावान् पाठः स्खलितोऽस्ति ।