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त्रसप्राणघातविरती शंका-समाधानम् थावरसंभारकडेण कम्मणा जं च थावरा भणिया।
इयरेणं तु तसा खलु इत्तो च्चिय तेसि भेओउ ॥१३०॥ स्थावरसंभारकृतेन पृथिव्यादिनिचयनिवतितेन । कर्मणा। यच्च यस्माच्च स्थावरा भणिताः, परममुनिभिरिति गम्यते। इतरेण तु त्रससंभारकृतेनैव । त्रसाः खल्विति सा एव, खलुशब्दस्यावधारणार्थत्वात् । अत एवास्मादेव निमित्तभेदात्तयोस्त्रसस्थावरयोर्भेदः, तस्मिन् सति अनर्थको भूतशब्द इति ॥१३०॥ इदानीं दृष्टान्तदान्तिकपयोर्वैषम्यमाह
नागरगंमि वि गामाइसंकमे अवगयंमि तब्भावे ।
नत्थि हु वहे वि भंगो अणवगए किमिह गामेण ॥१३१॥ नागरकेऽपि दृष्टान्ततयोपन्यस्य इदं विन्त्यते-ग्रामादिसंक्रमे तस्य किमसौ नागरकभावो. ऽपैति वा न वा ? यद्यपैति ततो ग्रामादिसंक्रमे सति । अपगते तद्भावे नागरकभावे। नास्त्येव वधेऽपि भङ्गः प्रत्याख्यानस्य तथाभिसन्धेः । अथ नापैत्यत्राह-अनपगते आपुरुषमभिसन्धिना अनिवृत्ते नागरकभावे । किमिह ग्रामेण तत्रापि वधविरतिविषयस्तथापुरुषभावानिवृत्तेरिति ॥१३१॥
इसके अतिरिक्त स्थावरसम्भारकृत-पृथिवी आदि निकाय रूपसे निर्वतित-कर्मके निमित्तसे चूंकि स्थावर कहे गये हैं तथा इसके विपरीत त्रस नामकर्मके निमित्तसे त्रस कहे गये हैं, इसी कारणसे उन दोनों में भेद है। इस प्रकारसे भो उन दोनोंमें भेदके होनेपर उसके लिए भूत शब्द का प्रयोग करना निरर्थक है ।।१३०॥
अब पूर्वमें वादीके द्वारा जो नागरिकवधका दृष्टान्त दिया गया था उसकी विषमता दिखलाते हैं
वादीके द्वारा दृष्टान्तरूपसे उपस्थित किये गये नागरिकके ग्राम आदिमें पहुँचने पर यदि उसकी नागरिकता न हो जाती है तो फिर उसके वधमें भी व्रत भंग होनेवाला नहीं है और यदि वहाँ भी उसको नागरिकता बनी रहती है तो फिर ग्रामसे क्या प्रयोजन सिद्ध होता है ? कुछ भी नहीं।
विवेचन-वादीने नागरिकका दृष्टान्त देते हुए यह कहा था (११९) कि जिस प्रकार नगरसे बाहर ग्राम आदिमें गये हुए नागरिका वध करनेपर नागरिकवधका प्रत्याख्यान करनेवालेका व्रत भंग होता है उसी प्रकार मरणको प्राप्त होकर त्रस पर्यायसे स्थावर पर्यायको प्राप्त हुए त्रस जीवोंका वध करनेपर त्रसवधका प्रत्याख्यान करनेवाले श्रावकका भी वह व्रत भंग होता है, अतः विशेषताके साथ त्रसवधका प्रत्याख्यान कराना चाहिए, न कि सामान्य रूपसे । इसपर यहाँ वादोसे यह पूछा गया है कि नगरके बाहर जानेपर उसकी नागरिकता नष्ट होती है या तदवस्थ बनी रहती है ? यदि वह नष्ट हो जाती है तब तो उसका वहाँ वध करनेपर भी उसका वह नागरिकवधका व्रत भंग नहीं होता है, क्योंकि वह उस समय नागरिक नहीं रहा-उसकी नागरिकता वहाँ वादीके अभिप्रायानुसार समाप्त हो जाती है। इसपर यदि यह कहा जाये कि उसकी नागरिकता वहाँ भी बनी रहती है तो फिर गाँव में जानेके निर्देशसे क्या लाभ है, क्योंकि नागरिकताके वहां भो तदवस्थ रहनेसे वह वहां भी उसके लिए अवध्य है। इस प्रकार वादोके द्वारा उपन्यस्त वह नागरिकवधका दृष्टान्त यहाँ लागू नहीं होता ॥१३१।। १. अ कम्मुणा। २. अ एत्तो। ३. थावरसंहारकृतेन ।
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