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८२ श्रावकप्रज्ञप्तिः
[११५ - भणिया य णेण, भण किं ते पियं कीरउ । तीए भणियं-कोमुदीए अंतेउराणं जहिच्छापयारेण निसि ऊस्सवपसाउत्ति। पडिसुयमणेण। सपागओ सो दियहो। कारावियं च अणेण भोसणं जहा जो एत्थ अज्ज पुरिसो वसिही तस्स मए सारीरो णिग्गहो कायव्वो, उग्गदंडो य रायत्ति। ततो गिरगया' सव्वे पुरिसा। णवरमेगस्स सेट्टिणो छ पुत्ता संववहारवावड्याए लहु गणिग्गया। ढक्किया पोलिओ। भएण तत्थेव खुसिया वत्तो रयणीऊसवो। बीयदिवहे य पउत्ता चारिया गवेसह को ण णिग्गउत्ति । तेहिं निउण्णबुद्धीए गवेसिऊण साहियं रन्नो, अमुगसेट्रिस्स छसुया ण णिग्गय त्ति । कुविओ राया। भणियं चाणेण वावाएह ते दुरायारे । गहिया ते रायपुरिसेंहिं। एयं वायं णिऊण गरवईसमीवं समागओ तेसि पिया। विन्नतो यण राया-देव, खमसु एगमवराह, मुयह एक्कवारं मम एए मा अन्नो वि एवं काहित्ति ण मुयई राया। पुणो पुणो भन्नमाणेण मा कुलखओ भवउ ति मुक्को से जेट्टपुत्तो, वावाइया इयरे । ज य समभावस्स सव्वपुत्तेसु सेठिस्स सेसवावायणेसु अणुमई ति। एस दिळंतो। इमो एयस्स उवणओ-रायातुल्लो सावगो, वादाइज्जमाणवणियतुल्ला जीवणिकाया, पियतुल्लो साहू, विन्नवणतुल्ला अणुवयगहणकाले साधुधम्मदेसगा। एवं च असुयणे वि सावगस्त, ण साधुस्स
धारिणी देवी था। एक समय राती धारिणी देवीके दनदातिशय(?)से सन्तुष्ट होकर राजाने उससे पूछा कि बोल तेरा कौन-सा अभीष्ट पूरा किया जावे? इसपर उसने कहा कि पूर्णिमाके दिन रातमें इच्छानुसार घूम-फिरकर अन्तःपुरकी रानियोंको कोमुदो ( रजनी) उत्सव मनानेकी प्रसन्नता प्रकट कीजिए। राजाने उसे स्वीकार कर लिया। वह उत्सवका दिन आ गया। तब राजाने नगरमें यह घोषणा करा दी कि आज जो पुरुष यहाँ रहेगा उसे मैं शारीरिक दण्ड कराऊंगा जो भयानक होगा। राजाकी इस घोषणाको सुनकर सब पुरुष नगरसे निकल गये, केवल एक सेठके छह पुत्र व्यवहार कार्यमें व्याप्त होनेसे शोघ्र नहीं निकल सके । पश्चात् जब उन्होंने राजाको उस घोषणापर ध्यान दिया तब भयभीत होकर वे वहीं छिप गये। रजनी उत्सव समाप्त हो गया। दूसरे दिन गुप्तचरोंको इस बातके खोजने में प्रवृत्त किया गया कि कौन पुरुष नगरसे नहीं निकला है। उन्होंने अपने बुद्धिचातुर्यसे खोजकर राजासे कह दिया कि अमुक सेठके छह पुत्र नहीं निकले। इसपर राजा क्रोधको प्राप्त हुआ। तब उसने कहा कि उन दुराचारियोंको मार डालो। तदनुसार राजपुरुषोंने उनको पकड़ लिया। इस वृत्तको जानकर उनका पिता राजाके समीप गया। उसने राजासे प्रार्थना की कि हे देव ! इनके एक अपराधको क्षमा कर दीजिए और इन मेरे पुत्रोंको छोड़ दीजिए । परन्तु राजा 'अन्य भी कोई ऐसे अपराधको न करे' इस विचारसे उन्हें नहीं छोड़ रहा था। जब सेठने बार-बार कहा तब 'वंशका क्षय न हो' इस विचारसे राजाने उसके बड़े पुत्रको छोड़ दिया और शेष पांच पुत्रोंको प्राणदण्ड दे दिया। सेठ अपने उन छहों पुत्रोंमें समान अनुराग रखता था। पर राजाने जब उन सबको न छोडा तब सेठने एक बड़े पुत्रको छडाया। इससे सेठको अन्य पुत्रोंके घातमें अनुमति नहीं रहो, बाध्य होकर ही उसे एक पुत्रको छुड़ाना पड़ा। यह दृष्टान्त है । इसका उपनय इस प्रकार है-प्रकृतमें श्रावक राजाके समान है, जीवनिकाय मारे भानेवाले सेठ पुत्रोंके समान हैं, साधु पिताके समान है तथा अणुव्रत ग्रहणके समयमें साधुके द्वारा दिया जानेवाला उपदेश सेठको विज्ञप्तिके समान है। इस प्रकार श्रावकके असुजन (धूर्त) होनेपर
१. अ उग्रदंजोराय त्ति णिग्गया। २. अ ढक्कीया पलीउ । ३. अ तत्येण । ४. अ को णिग्रउत्ति । ५. अ. 'ते' नास्ति । ६. म गहियो राय । ७. अ 'ते' नास्ति । ८. अ समागउ सिंथिया । ९. अ य य ।