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नवाँ अध्याय सम्यकमिथ्यात्वमें एक संज्ञिपर्याप्तक और मिथ्यात्वमें चौदह ही जीवस्थान हैं। संझियों में पर्याप्तक और अपर्याप्तक ये दो तथा असंज्ञियों में शेष बारह जीवस्थान होते हैं । संज्ञि असंशिव्यवहाररहित स्थानमें एक पर्याप्तक जीवस्थान होता है। कर्मोदयापेक्ष आहारमें चौदह ही जीवस्थान होते हैं । अनाहार अवस्था अपर्याप्तक सम्बन्धी सातमें, पर्याप्तकके केवलिसमुद्धातकालमें तथा कर्मोदयकी अपेक्षा अयोगकवलीमें होती है। सिद्ध अतीतजीवस्थान हैं।
मार्गणाओंमें गुणस्थान निरूपण
नरक गतिमें पर्याप्तक नारकोंमें आदिके चार गुणस्थान होते हैं। प्रथम नरकमें अपर्याप्तकके पहला और चौथा दो गुणस्थान, अन्य पृथिवियों में अपर्याप्तकके एक मिथ्यात्व गणस्थान ही होता है। तिर्यंच गतिमें तिर्यंच पर्याप्तकोंके आदिके पाँच गण स्थान, अपर्याप्तकोंके मिथ्यादृष्टि सासादन और असंयत सम्यग्दृष्टि ये तीन गणस्थान होते हैं। पर्याप्त तिर्यचियोंके आदिके पाँच गणस्थान अपर्याप्तिकाओंमें मिथ्यादृष्टि और सासादन ये दो गणस्थान होते हैं । स्त्रीतियंचोंमें सम्यग्दृष्टि उत्पन्न नहीं होता अतः सम्यग्दृष्टि गुणस्थान नहीं होता। मनुष्यगतिमें पर्याप्त मनुष्योंके चौदह ही गुणस्थान होते हैं तथा अपर्याप्तकोंके मिथ्यादृष्टि सासादन और असंयत सम्यग्दृष्टि ये तीन गणस्थान हैं । पर्याप्त मनुषिणियों के भावलिंगकी अपेक्षा चौदह ही गुणस्थान होते हैं। द्रव्यलिंगकी अपेक्षा तो आदिके पाँच ही गुण स्थान हैं। अपर्याप्त स्त्रियों में आदिके दो मिथ्यादृष्टि और सासादन ही गुणस्थान होते हैं क्योंकि सम्यग्दृष्टि स्त्रियों में उत्पन्न नहीं होता। भवअपर्याप्तक तिर्यंच और मनुष्यों में एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान होता है। देवगतिमें पर्याप्तक भवनवासी व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें आदिके चार गुणस्थान अपर्यातकों आदिके दो गुणस्थान होते हैं। इनकी देवियों और सौधर्म ईशानस्वर्गकी देवियोंमें भी पूर्वोक्त क्रम हैं । सौधर्म ईशान आदि अन्तिम प्रैवेयक तकके पर्याप्तकोंमें आदिके चार गुणस्थान होते हैं। अनुदिश अनुत्तरवासी पर्याप्तक और अपर्याप्तकों में एक असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान होता है।
एकेन्द्रियसे लेकर असंज्ञिपञ्चेन्द्रियों तकमें एक ही मिथ्यादृष्टि गुणस्थान होता है । पञ्चेन्द्रियसंज्ञियोंमें चौदह ही गुणस्थान होते हैं। पृथिवीकायिक आदि वनस्पति पर्यन्त स्थावर कायिकोंमें एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान होता है, त्रसकायिकोंमें चौदह ही गुणस्थान होते हैं। सत्यमनोयोग और अनुभय मनोयोगमें संज्ञिमिथ्यादृष्टिसे तेरहवाँ गुणस्थान तक होता है। सत्यमनोयोग और उभय मनोयोगमें संज्ञिमिथ्या दृष्टि आदि बारहवाँ गुणस्थान तक होता है। अनुभय वाग्योगमें द्वीन्द्रिय आदि सयोगकेवली पर्यन्त सत्यवाग्योगमें संज्ञिमिथ्यादृष्टि आदि सयोगकेवली पर्यन्त, मृषावाग्योग और उभयवाग्योरामें संज्ञिमिथ्यादृष्टि आदिक्षीणकषाय पर्यन्त गुणस्थान होते हैं । औदारिक मिश्रकाययोगमें मिथ्यादृष्टि सासादनसम्यग्दृ ष्टि असंयतसम्यग्दृष्टि और सयोगकेवली ये चार गुणस्थान होते हैं। वैक्रियिककाययोगमें आदिके चार गुणस्थान और मिश्रमें मिश्रगुणस्थानसे रहित तीन ही गुणस्थान होते हैं। आहारक और आहारकमिश्रमें एक ही प्रमत्तसंयत गुणस्थान होता है । कार्मण काययोगमें मिथ्या दृष्टि सासादन असंयत सम्यग्दृष्टि और सयोगकेवली ये चार गुणस्थान होते हैं । अयोगमें एक अयोगी गुणस्थान है। स्त्रीवेद और पुंवेदमें असंज्ञो पंचेन्द्रिय आदि अनिवृत्ति बादरसाम्पराय तक नवगुणस्थान और नपुंसक वेदमें एकेन्द्रियसे लेकर अनिवृत्तिबादरसाम्पराय तक नव गुणस्थान होते हैं। नपुंसकवेदमें नारकियोंके चार गुणस्थान एकेन्द्रिय आदि चतुरिन्द्रिय पर्यन्तके एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान होता है। असंज्ञिपंचेन्द्रिय आदि संयतासंयत गुणस्थानवर्ती तिथंच तीनों वेदवाले होते हैं । मनुष्य तीनों वेदोंमें अनिवृत्तिबादरतक नवगुणस्थानवाले होते हैं । इसके आगेके मनुष्य अपगतवेद हैं। देव चारों गुणस्थानों में स्त्रीवेदी या पुंवेदी होते हैं। क्रोध मान और मायामें एक