________________
६९६ तत्त्वार्थवार्तिक-हिन्दी-सार
[५।२५ भेदपूर्वक कार्य उत्पन्न नहीं हो जाता तबतक उसे कारण भी नहीं कह सकते। पुत्रके अभावमें पिता व्यपदेश नहीं होता । अनादि परमाणुकी छाया आदि भी नहीं पड़ सकती; क्योंकि छाया आदि स्कन्धोंकी होती है, अतः छायादिरूप कार्यकी अपेक्षा भी वह कारण नहीं कहा जा सकता। छायादि चाक्षुष हैं, अतः वे परमाणुके कार्य नहीं हो सकते । परमाणुके कार्य तो अचाक्षुष होंगे। फिर अनादिकालसे अबतक परमाणुकी अवस्थामें ही रहनेवाला कोई अणु नहीं है। 'भेदादणु:' सूत्रमें स्कन्धभेदपूर्वक परमाणुओंकी उत्पत्ति बताई है। अतः 'अनादि परमाणु की अपेक्षा नित्य कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि उसमें भी स्नेह आदि गुणोंका प्रतिक्षण परिणमन होता रहता है । कोई भी पदार्थ परिणामशून्य नहीं है । द्वयणुक आदिकी तरह संघातसे परमाणु कभी उत्पन्न नहीं होता अतः कारण ही है, और द्रव्यदृष्टिसे व्यय और उत्पाद नहीं होता अतः नित्य है। इस तरह विशेष विवक्षामें 'कारणमेव' यहाँ एवकारका भी विरोध नहीं है।
१३-१४. परमाणु निरवयव है, अत: उसमें एक रस एक गन्ध और एक वर्ण है। सावयव ही मातुलिंग आदिमें अनेक रस, मयूर आदिमें अनेक वर्ण और अनुलेपन आदिमें अनेक गन्ध हो सकती हैं। उसमें शीत और उष्णमेंसे कोई एक तथा स्निग्ध और रूक्षमेंसे कोई एक, इस तरह अविरोधी दो स्पर्श होते हैं । गुरु-लघु मृदु और कठिन स्पर्श परमाणुमें नहीं पाये जाते क्योंकि वे स्कन्धगत हैं। शरीर इन्द्रिय और महाभूत आदि स्कन्धरूप कार्योसे परमाणुका अस्तित्व सिद्ध होता है। कार्यलिंगसे कारणका अनुमान किया जाना सर्वसम्मत नियम है। परमाणुओं के अभावमें स्कन्ध कार्य नहीं हो सकते।
१५. अतः अनेकान्त दृष्टिसे ही उक्तलक्षण ठीक हो सकता है। द्वयणुक आदि स्कन्ध कार्योंका उत्पादक होनेसे परमाणु स्यात् कारण है, स्कन्ध भेदसे उत्पन्न होता है और रूक्ष आदि कार्यभूत गुणोंका आधार होनेसे स्यात्कार्य है । उससे छोटा कोई भेद नहीं है अतः वह स्यात् अन्त्य है, प्रदेशभेद न होनेपर भी गुणभेद होनेके कारण वह अन्त्य नहीं भी है। सूक्ष्म परिणमन होनेसे स्यातसूक्ष्म है और स्थूलकार्यकी उत्पत्तिकी योग्यता रखनेसे स्यात् स्थूल भी है। द्रव्यता नहीं छोड़ता अतः स्यात् नित्य है, स्कन्ध पर्यायको प्राप्त होता है और गुणोंका विपरिणमन होनेसे स्यात अनित्य है। अप्रदेशत्वकी विवक्षामें एक रस एक गन्ध एक वर्ण और दो स्पर्शवाला है, अनेकप्रदेशी स्कन्धरूप परिणमनकी शक्ति होनेसे अनेक रस आदि वाला भी है। कार्यलिंगसे अनुमेय होनेके कारण स्यात् कार्यलिंग है और प्रत्यक्षज्ञानका विषय होनेसे कार्यलिंग नहीं भी है।
६१६. जिन परमाणुओंने परस्पर बन्ध कर लिया है वे स्कन्ध कहलाते हैं। वे तीन प्रकारके हैं-स्कन्ध, स्कन्धदेश और स्कन्धप्रदेश । अनन्तानन्त परमाणुओंका बन्धविशेष स्कन्ध है। उसके आधेको देश कहते हैं और आधेके भी आधेको प्रदेश । पृथिवी जल अग्नि वायु आदि उसीके भेद हैं । स्पर्शादि और शब्दादि उसकी पर्याय हैं । घट पट आदि स्पर्शादिमान पदार्थ पृथिवी हैं । जल भी पुद्गलका विकार होनेसे पुद्गलात्मक है। उसमें गन्ध भी पाई जाती है। 'जलमें संयक्त पार्थिवद्रव्योंकी गन्ध जलमें आती है, जल स्वयं निर्गन्ध है' यह पक्ष असिद्ध है। क्योंकि कभीभीगन्धरहित जल उपलब्धनहीं होता और न पार्थिव द्रव्योंके संयोगसे रहित ही गन्ध स्पर्शका अविनाभावी है । अर्थात् पुद्गलका अविनाभावी है अतः वह जलका ही गुण है । जल गन्धवाला है क्योंकि वह रसवाला है जैसे कि आम । अग्नि भी स्पर्शादि और शब्दादि स्वभाववाली है क्योंकि वह पृथिवीत्ववाली पृथिवीका कार्य है जैसे कि घड़ा। 'स्पादिवाली लकड़ी आदिसे अग्नि उत्पन्न होती है। यह सर्वविदित है। पुद्गलपरिणाम होनेसे ही खाए गए स्पर्शादिगुणवाले आहारका वात पित्त और कफरूपसे परिणाम होता है । पित्त अर्थात् जठराग्नि । अतः तेजको स्पर्श आदि गुणवाला ही मानना ठीक है । इसी तरह वायु भी स्पर्शादि और शब्दादि पर्यायवाली