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81 / श्री दान- प्रदीप
स्वयं का आसन नीचा रखना आदि अनेक प्रकार के विनय कहे गये हैं । इस लोक से संबंधित विद्या भी अगर विनय के बिना ग्रहण की जाती है, वह सफल नहीं होती, तो फिर परलोक-संबंधी विद्या किस प्रकार सफल हो सकती है? इसके ऊपर एक दृष्टान्त कहा जाता है
राजगृह नामक नगर में श्रेणिक नामक राजा रहता था। उसके चेलना नामक पट्टरानी थी। राजा कभी भी उसके वचनों का उल्लंघन नहीं करता था। एक बार उसने राजा से कहा - " हे स्वामी! मेरे लिए एक स्तम्भ का प्रासाद करवाइए।"
यह सुनकर राजा ने सुथारों को आज्ञा प्रदान की। वे लोग काष्ठ लाने के लिए वन में गये। अभयकुमार भी उनके साथ था। वे लोग चारों तरफ वन में घूमने लगे। तभी उन्हें एक विशाल दिव्य वृक्ष दिखायी दिया। उन्होंने धूप, पुष्पादि द्वारा वृक्ष की पूजा करके वृक्ष से कहा- "जिन देवों ने इस वृक्ष को अधिष्ठित किया हुआ है, वे प्रकट हों । अगर किसी भी देव ने इस वृक्ष का आश्रय लिया हुआ है, तो हम इस वृक्ष का छेदन नहीं करेंगे। अगर यहां कोई भी देव नहीं है, तो हम इस वृक्ष का छेदन करेंगे ।"
यह सुनकर वहां रहा हुआ एक यक्ष प्रकट होकर बोला- "यह मेरा वृक्ष है । तुम इसका छेदन मत करना। मैं तुम्हें सर्व ऋतुओं के उद्यान से युक्त ऊँची वेदिकावाला एक स्तम्भयुक्त प्रासाद अपनी दिव्य शक्ति से बनाकर दे दूंगा ।"
यह सुनकर वे सभी हर्षित होते हुए नगर में गये और सारा वृत्तान्त राजा को बताया । यक्ष ने भी क्षणभर में अपने कथनानुसार वैसा एक प्रासाद बनाकर दे दिया । उस प्रासाद में रहकर चेलना राजा श्रेणिक के साथ दिव्य भोगों को भोगने लगी। अपने कर्म अनुकूल हो, तो कौनसी इच्छित वस्तु की प्राप्ति नहीं होती?
एक बार उस नगर में एक चण्डालिन को अकाल में आम खाने का दोहद उत्पन्न हुआ । उसने अपने पति से कहा । उसके पति को पता था कि ऋतु न होने से इस समय आम कहीं भी प्राप्त नहीं होगा । अतः वह चोरी करने की नीयत से रानी चेलना के एक स्तम्भवाले महल के सर्वऋतुयुक्त उद्यान के पास पहुँचा । उद्यान के बाहर रहकर ही अवनामिनी विद्या के द्वारा आम्रवृक्ष की डाली को नमाकर उसमें से हाथों द्वारा आमों को तोड़कर वापस उन्नामिनी विद्या के द्वारा शाखा को ऊपर करके अपने घर लौट आया । स्त्री के पाश में बंधा हुआ पुरुष क्या-क्या प्रयास नहीं करता? प्रभात होने पर राजा जब उद्यान में आया, तो उस डाली को फल - रहित देखकर आश्चर्यचकित रह गया। आस-पास किसी के भी आने-जाने के पदचिह्न दिखायी नहीं दिये । राजा ने चकित होते हुए विचार किया - " ऐसा कौनसा चोर