________________
55/श्री दान-प्रदीप
के लिए जाने का निर्णय किया। यह ज्ञात करके चन्द्रसेन कुमार ने राजा के पास नमस्कारपूर्वक विज्ञप्ति की-“हे स्वामी! मुझ पर प्रसन्न होते हुए शत्रु के विनाश के लिए मुझे जाने की अनुमति प्रदान करें। मैं छोटा हूं, असमर्थ हूं-इस प्रकार चित्त में शंका को स्थान न दें, क्योंकि छोटा होते हुए भी वज्र क्या बड़े-बड़े पर्वतों को नहीं भेदता? छोटा होते हुए भी सिंह-शिशु क्या मदोन्मत्त हाथी को वश में नहीं करता?"
प्रधानों ने भी राजा से कहा-“पहले कुमार को हमने जबरन रोका था। अतः अब इसके उत्साह को नष्ट करना योग्य नहीं है। इसे भी ज्यादा शक्तिशाली सेना के साथ भेजना चाहिए। इसका पराक्रम अलौकिक जान पड़ता है। अतः यह अवश्य ही विजयलक्ष्मी का वरण करेगा।"
यह सुनकर राजा ने आज्ञा प्रदान की। तब संग्राम के लिए उत्सुक चन्द्रसेन विशाल सेना के साथ देश की सीमा पर पहुँचा। वहां सेना का पड़ाव डालकर एक विचक्षण दूत को संदेश देकर सेवाल राजा के पास भेजा। उस दूत ने भी सेवाल राजा के पास जाकर उसे प्रणाम करते हुए कहा-"किसी समय दैव के दुष्ट योग से मृगों के साथ युद्ध करते हुए प्रमाद के कारण केसरी सिंह कदाचित् भग्न होकर पलायन कर जाय, तो क्या इतने मात्र से वे बिचारे मृग सिंह को जीतनेवाले कहे जा सकते हैं? इसी प्रकार प्रमादवश कदाचित् मेरे बड़े भाई तुमसे पराजित हो गये, तो इतने मात्र से तुम अपने आपको जितकाशी न मानो। जो जल जाज्ज्वल्यमान अग्नि को शान्त कर देता है, उस जल को भी देख लो कि वह समुद्र में वड़वानल को शान्त नहीं कर पाता है। वास्तव में तुमने प्रपंच के द्वारा ही ऋजु प्रकृतिवाले मेरे ज्येष्ठ भाई का पराभव किया है, क्योंकि पराक्रम के द्वारा तो उन्हें इन्द्र भी जीत नहीं सकता। अतः अगर वास्तव में तुझमें कोई युद्धकला है, तो मेरे साथ युद्ध करने के लिए सन्नद्ध हो जाओ। मैं छल के द्वारा जीता गया हूं-ऐसा भी किसी के सामने मत बोलना, क्योंकि हम कुलीन होने के कारण पराक्रम के द्वारा ही जीतने की इच्छा रखते हैं।"
यह सुनकर सेवाल ने कहा-“हे दूत! तेरे स्वामी के लड़के प्रतिबन्ध रहित और वाचाल हैं। इसी कारण अनाप-शनाप उद्धतायुक्त वचन बोल रहे हैं। उनके बराबर के वचन बोलना मुझ-जैसे बुजुर्ग के लिए कदापि योग्य नहीं है। बालक ही बालक की बराबरी करता है। पर इसमें बालक का भी क्या दोष है? दोष तो उसके पिता का है, जिसने बुद्धि-रहित बनकर ऐसे भयंकर रण-संग्राम में बालकों को भेजा है। बल्कि ये कुमार वाचाल, विनय-रहित, दुष्ट और विपरीत-शिक्षा को प्राप्त हैं-ऐसा मानकर इनके पिता ने युद्ध के बहाने से इन्हें शिक्षा देने के लिए ही मेरे पास भेजा है, ऐसा जान पड़ता है। अतः हे दूत! तुम वापस जाओ और जाकर अपने स्वामी से कहो कि मैं उसे आसानी से जीत लूंगा। अतः मुझे कौन-सी युद्ध की तैयारी करनी है? मृगशावकों को मारने के लिए सिंह को किस तैयारी की जरुरत होती है?