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________________ 332/श्री दान-प्रदीप भी धन्यवाद की पात्र है, क्योंकि उसने आज तक मुझे देखा भी नहीं है, मेरे जुआ खेलने के दुर्व्यसन को भी स्पष्ट रीति से जानती है, पर फिर भी पतिव्रता की तरह मुझ पर अकृत्रिम प्रेम रखती है। वह वेश्या होने पर भी मुझ पर अत्यन्त प्रीतियुक्त होकर स्वयं पर आसक्त होते हुए राजा और लक्ष्मीसंपन्न युवानों को भी तृणवत् मानती है। मेरे विरह से पीड़ित वह अकुलीन होने पर भी कुलवती स्त्रियों में दुर्लभ और दुष्कर पतिव्रता धर्म को पाल रही है। अतः वह सामान्य स्त्री नहीं हो सकती। वह तो मनस्वी जनों के द्वारा मान्य करने लायक है। अतः मुझे उसे देखने के लिए वहां जाना चाहिए। मुझ पर अत्यन्त रागभाव रखनेवाली उसने मेरे वहां जाने की इच्छा ही दर्शायी है। इसीलिए उस चतुर नारी ने मुझे प्रेम की भेंट नहीं भिजवायी। वहां जाने से अनेक आश्चर्यों से युक्त कन्यकुब्ज नगर के भी दर्शन हो जायंगे। देशान्तर देखने से धीरपुरुषों को गुणप्राप्ति होती है।" इस प्रकार विचार करके वह मनस्वी शीघ्र ही वहां से चला। विविध प्रकार के आश्चर्यों द्वारा मनोहर पृथ्वी को देखते हुए वह उस श्रेष्ठ पतिव्रता को देखने के लिए थोड़े ही दिनों में कन्यकुब्ज नगर की सीमा में पहुंच गया। नीति के जानकार उस कुमार ने विचार किया-"यहां भोजन करके फिर पुर में प्रवेश करूं।" ऐसा विचार करके वह कुछ देर के लिए नगर के बाहरवाले उद्यान में ठहर गया। थोड़ी ही देर में वहां एक पुरुष आया। वह सुथारादि कार्य करनेवालों को देखकर कुमार ने उस नगर-पुरुष से पूछा-"यह क्या काम चल रहा है?" तब उस पुरुष ने कहा-"इस पुर में नीतिसार नामक राजा है। वह नीति में प्रधान होने से उसका नाम सार्थक ही है। उस राजा ने पुण्यकार्य के लिए यहां वापी बनवाने का कार्य शुरु किया है। देख-रेख के लिए अपने अधिकारी नियुक्त किये हैं। उस राजा ने इस कार्य में नौ लाख स्वर्णमुद्राएँ खर्च की हैं। जिसने जो पात्र माना हो, वह उसी में आदरयुक्त रहता है। इस कार्य में पृथ्वी खोदने के लिए, धूल उठाने के लिए और खान गढ़ने के लिए आदि विविध कार्य करने के लिए यहां अनेक लोग मजदूरी करते हैं। यहां जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट-तीन प्रकार का कर्म करनेवाले पुरुष हैं। उन्हें योग्य भोजन करने के लिए भोजनशाला भी तीन रखी हुई है। उन्हें परोसने के लिए भी तीन प्रकार के लोग हैं, क्योंकि नीति के ज्ञाता पुरुष किसी भी स्थान पर अपने औचित्य से चूकते नहीं।" ऐसा कहकर वह पुरुष वहां से चला गया। तब ध्वजभुजंग भी भोजन करने की इच्छा से वहां कार्य करने लगा। उसके बाद मध्याह्न के समय समग्र कार्य करनेवालों की परीक्षा
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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