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________________ 308 / श्री दान- प्रदीप मात्र पति की कथा सुनने से ही कितनी उल्लसित हो गयी हैं। पति का आगे का वृत्तान्त नहीं जान पाने से जल बिन मछली की तरह कैसे खेदखिन्न हो रही हैं। अभी सत्य स्वरूप कहने पर भी ये पतिव्रताएँ मुझे इस रूप में देखकर मुझे नहीं पहचान पाने के कारण मुझे पति के रूप में अंगीकार नहीं करेंगी । इधर रुद्र मंत्री भी अपनी हकीकत सुन लेने से मुझ पर मन ही मन अत्यन्त कुपित है—यह स्पष्ट प्रतीत होता है। अभी तो राजा की उपस्थिति में यह मुझे मारने में समर्थ नहीं है। पर अवसर आने पर मुझे मारने की इसकी नीयत साफ दिखायी दे रही है। अतः अभी तो इस राजा की पुत्री के साथ विवाह करके इसका जामाता बन जाऊँ, जिससे यह अधम मंत्री मुझे मारने में समर्थ न हो सके।" ऐसा विचार करके कुब्ज ने उन तीनों स्त्रियों से कहा- "कल्याणयुक्त उस कुमार का वृत्तान्त मैं तुम्हें समय आने पर कहूंगा।" इस प्रकार आश्वासन देकर उसने राजा से कहा- "हे राजन! मैंने आज तीन स्त्रियों को बुलवा दिया है। अब आप अपनी कन्या के साथ मेरा विवाह करके अपनी प्रतिज्ञा को सत्य करें।" यह सुनकर राजा ने कन्या की मातादि पारिवारिकजनों के निषेध के बावजूद भी अपनी प्रतिज्ञा-भंग के भय से कुब्ज के साथ अपनी कन्या का विवाह कर दिया। कहा है कि - - “कदाचित् नदियों का पति समुद्र सूख जाय, अग्नि शीतलता को प्राप्त कर ले, सूर्य पश्चिम दिशा में उदय को प्राप्त हो, मेरुपर्वत कंपायमान हो और चन्द्र ताप प्रदान करे, फिर भी महापुरुष कभी अपनी प्रतिज्ञा का लोप नहीं करते । " इस पाणिग्रहण की विधि में किसी का मन हर्षित नहीं हुआ, क्योंकि अयोग्य वर के साथ विवाह करना विडम्बना मात्र है । पर अपने पति का वृत्तान्त जानने से हर्ष को प्राप्त वे तीनों स्त्रियाँ विवाह उत्सव में मधुर स्वर में मंगल गीत गाने लगीं। फिर हस्तमोचन के समय कुब्ज ने राजा से कहा- "मुझे हाथी, घोड़ा, स्वर्णादि प्रदान करें ।" यह सुनकर कोप से नेत्रों को लाल करते हुए उसके साले ने कहा - "रे कुब्ज ! फुफकार मारता हुआ सर्प ही तुझे सारी वस्तुएँ प्रदान करेगा ।" कुब्ज ने कहा - "ठीक है । वह सर्प ही दे ।" उसके इस प्रकार कहते ही तुरन्त ही कहीं से आकर अकस्मात् किसी सर्प ने उसे निर्दयतापूर्वक डस लिया । उसके अंग विष के आवेश से व्याप्त हो गये । वह मूर्च्छित हो गया और छेदे हुए मूलवाले वृक्ष की तरह भूमि पर गिर पड़ा। उसकी उस अवस्था को देखकर उसकी तीनों स्त्रियों का हृदय व्याकुल हो गया । उनके नेत्रों से अश्रु प्रवाहित होने लगे। वे
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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