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294/श्री दान-प्रदीप
ऐसा कहकर उसके वचनों का अनुमोदन किया। फिर उसने मन में विचार किया कि इतने दिन बीत गये पर धनवती के कुछ भी समाचार मुझे प्राप्त नहीं हुए। क्या मेरे विरह की पीड़ा से पीड़ित वह समुद्र में ही डूब गयी? या पाटिया मिल जाने से किसी अन्य द्वीप में पहुँच गयी? इस प्रकार विचार करके उसने किसी निमित्तज्ञ से एकान्त में पूछा । ज्योतिष शास्त्र रूपी नेत्रों के द्वारा देखकर उसने बताया-"आपकी प्रिया किसी अन्य द्वीप में जीवित है। प्रयत्न करने पर वह आपको अवश्य ही मिलेगी।"
__उसके अमृतमय वचनों को सुनकर कुमार अत्यन्त प्रसन्न हुआ। उसे स्वर्णालंकार देकर प्रसन्न किया। फिर उसने विचार किया कि मैं अभी परदेश में हूं। अभी तो इस प्रिया के बंधन में हूं। अतः धनवती को प्राप्त करने का क्या उपाय करूं? उधर मेरे माता-पिता भी मेरे वियोग से आतुर होकर मेरी खबर नहीं मिलने से अत्यन्त दुःखित होंगे। अतः अभी तो घर जाकर माता-पिता को नमन करके उनके पास इस प्रिया को छोड़कर धनवती को खोजने का उपक्रम करूं।
ऐसा विचार करके तत्काल राजा के पास गया । उन्हें प्रणाम करके विज्ञप्ति की-“हे देव! माता-पिता से मिलने के लिए मेरा मन अत्यन्त उत्कण्ठित हो रहा है। वे मेरे वियोग से अत्यन्त दुःखी हो रहे होंगे। अतः मुझे शीघ्र ही घर लौटने की आज्ञा प्रदान कीजिए।"
कुमार के ऐसे निश्चय को जानकर राजा ने कहा-"अगर आपने जाने का निश्चय कर ही लिया है, तो हम आपको रोकने में समर्थ नहीं हैं। पर आपके वियोग से भयभीत होते हुए आपको जाने की आज्ञा देने में भी समर्थ नहीं है। बस! इतना ही कह सकते हैं कि बहुत जल्दी हमारा पुनः समागम हो।"
ऐसा कहकर राजा ने कुमार को जाने के लिए एक बहुत बड़ा वाहन समर्पित किया। हृदय को आनन्दित करनेवाले द्रव्यों से उस वाहन को परिपूर्ण भी कर दिया। फिर दृष्टि और मन को मनोहर लगनेवाले वस्त्रों और दूषण रहित भूषणों के द्वारा राजा जवाई और पुत्री का सत्कार किया। जाने की तैयारी करके पुत्री पिता को नमन करने गयी, तब राजा ने उसे मधुर वाणी में शिक्षा प्रदान करते हुए कहा-“हे पुत्री! निरन्तर सास-ससुर की सेवा करना। पति पर अकृत्रिम प्रेमभाव रखना। सौतों से कभी ईर्ष्या मत करना। ननंद का विनय रखना। सगे-सम्बन्धियों पर स्नेहभाव रखना। परिवार के प्रति वात्सल्य भाव रखना। अशुभ कार्यों से दूर रहना। पुण्यकार्य में प्रवृत्ति करना। प्रिय वचन बोलना। लज्जाशील बनना । यथोचित दान देना। ये सभी गुण स्त्रियों को श्वसुर गृह में स्थिर प्रतिष्ठा प्रदान करते हैं। उत्कृष्ट शील ही स्त्रियों का मण्डन है। अतः निरन्तर उसी शील का पालन करना। यह शील ही इसलोक और