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278/श्री दान-प्रदीप
यह सुनकर उस प्रश्न का जवाब देने में तीव्रबुद्धि युक्त सभासद भी मूढ़ बन गये। किस-किसने अपने मन को सन्देह के झूले में नहीं झुलाया?
फिर देवी के प्रसाद से विकस्वर बुद्धियुक्त धनदत्त ने कहा-"समुद्र में कादव अधिक है और पानी अल्प है। अगर तुम्हें विश्वास न हो, तो पहले समुद्र में जानेवाली गंगा आदि नदियों के प्रवाह को रोक । उसके बाद पानी का मान कर और कादव का मान कर । अगर कादव से ज्यादा पानी हो, तो मैं तुम्हें पाँच करोड़ स्वर्णमुद्रा प्रदान करूंगा।"
इस प्रकार धनदत्त ने उस धूर्त को निरुत्तर कर दिया। फिर राजाज्ञा से उसने वे पाँच रत्न धनदत्त को सौंप दिये।
एक बार उस नगर में मनोहर रूपयुक्त, दैदीप्यमान अलंकार को धारण करनेवाला और नवयौवन से युक्त कोई कपटनिधि महेभ्य सार्थवाह बनकर आया और बारह करोड़ स्वर्ण की मालकिन अनंगसेना नामक गणिका के घर गया। उसे देखकर कपट करने में चतुर वह गणिका भी उसे धनाढ्य जानकर कहने लगी-"अहो! आज मेरे अगणित पुण्य उदय में आये हैं, जिससे मेरे घर में जंगम कल्पवृक्ष का पदार्पण हुआ है। आज रात्रि के अन्तिम प्रहर में मुझे स्वप्न आया था। उसमें मानो देव प्रसन्न हुआ हो-इस प्रकार से आपके पास से मुझे बारह करोड़ स्वर्णमुद्रा प्राप्त हुई। यह स्वप्न अभी सत्य साबित हुआ जान पड़ता है। पर यह लोकोक्ति भी सत्य है कि स्वप्न में प्राप्त हुई वस्तु किसे हकीकत में मिलती है?"
यह सुनकर हाजिर-जवाबी उस धूर्त ने कहा-“हे भद्रे! तुमने सत्य ही कहा, क्योंकि मुझे तुम्हारे यहां बारह वर्ष तक रहना है-ऐसा कहकर मैंने आज स्वप्न में बारह करोड़ सोनैये तुम्हारे घर पर स्थापन के तौर पर रखे हैं। तेरे सौंदर्य, चतुराई और प्रीति आदि गुणों से मैं तुम्हारे आधीन बन गया हूं। अतः मैं जीवन–पर्यन्त तुम्हारे घर पर रहूंगा। पर अभी कोई सार्थ देशान्तर में जानेवाला है। वहां अत्यधिक लाभ संभवित है। अतः मैं वहां जाने के लिए तैयार हुआ हूं, क्योंकि जहां लाभ सम्भव हो, वहां जाने में वणिक आलस्य नहीं करते।
अतः हे प्रिये! अभी तो तूं मेरे बारह करोड़ वापस दे, ताकि मैं व्यापार कर सकूँ । रकम के बिना दूर देश में व्यापार नहीं हो सकता। व्यापार करने के बाद मैं जल्दी ही तुम्हारे पास वापस आऊँगा, क्योंकि मैं तुम्हारे कामण के आधीन हो गया हूं।" ।
यह सुनकर वह गणिका उसे जवाब नहीं दे पायी। उसकी सारी आशा उस धूर्त ने निष्फल कर दी। चंचलता रहित वानरी की तरह वह शून्य बन गयी और वह धूर्त उससे अत्यन्त वाद-विवाद करते हुए उसे चौटे पर ले आया। अत्यन्त उद्विग्न होकर गणिका ने नगर में पटह बजवा दिया कि जो कोई इस विवाद को शान्त करेगा, उसे मैं एक करोड़ द्रव्य