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232/श्री दान-प्रदीप
करनेवाले और मूर्त्तिमान शांत रस के समान धर्मरुचि अणगार मासक्षमण के पारणे के लिए मानो उनकी दरिद्रता दूर करने के लिए कल्पवृक्ष के समान उनके घर पर पधारे। उन्हें घर पर आया हुआ देखकर महाबुद्धिशाली उस दम्पति ने आनन्दपूर्वक विचार किया-"अहो! आज हमारे पुण्य फलीभूत हुए। अहो! हमारे पाप नाश को प्राप्त हुए। अहो! वन्ध्या के घर पुत्र का जन्म हुआ। अहो! मरुस्थल में कल्पवृक्ष का उदय हुआ। अहो! जलरहित प्रदेश में देवगंगा आयी। अहो! अमावस्या की रात्रि में चन्द्रोदय हुआ, जिससे कि हमारे ग्राम में, हमारे घर में ऐसे साधु-महात्मा पधारे। अगर ऐसे सुपात्र को भक्तिपूर्वक कुछ भी दिया जाय, तो लक्ष्मी, जन्म और जीवन–तीनों ही सफल बन जायंगे। इन्हें जैसा-तैसा दान भी दिया जाय, तो भी वह महान फल प्रदान करता है। गाय को तुच्छ घास खिलाने पर भी वह मधुर दूध ही प्रदान करती है।"
इस प्रकार विचार करके मन के उल्लास से विकस्वर रोमांच रूपी कंचुक को धारण करके उस दम्पति ने शीघ्र ही खड़े होकर उन मुनि को नमन किया। हर्षवश नेत्रों में आये हुए अश्रुजल के प्रवाह के द्वारा पुण्य रूपी वृक्ष को मानो सींच रहे हों और मानो अपने समस्त पाप पंक को धो रहे हों-ऐसे वृद्धिप्राप्त शुभ आशययुक्त उन्होंने बहुमानपूर्वक अपने घर में रहे हुए उत्तम और शुद्ध अन्न के द्वारा मुनि को प्रतिलाभित किया। इस प्रकार सर्व उपाय से शुद्ध पात्रदान के प्रभाव से विधिपूर्वक मरण प्राप्त करके तुम दोनों सर्व अद्भुत समृद्धि से युक्त बने हो।
पात्रदान के अगणित प्रभाव की क्या स्तुति की जाय? क्योंकि इसके सामने तो कल्पवृक्ष भी किंकर के समान है। पात्रदान प्राणियों को जगत में अद्भुत सौभाग्य प्रदान करता है, अत्यन्त विशाल सौन्दर्य उसके आधीन करता है, स्वर्ग के शुभ भोगों का समूह प्रदान करता है, कीर्ति को अत्यन्त विस्तृत बनाता है और मुक्ति रूपी लक्ष्मी प्रदान करता है। पात्र के आधीन किया हुआ वित्त प्राणियों का क्या-क्या हित नहीं करता? कदाचित् कोई पुरुष चुल्लु के द्वारा समुद्र के पानी को माप सके, आकाश में रहे हुए तारों की गिनती करने में शक्तिमान बन जाय तथा नदी की रेत के कणों का भी प्रमाण कर ले, पर पात्रदान के गुणों को कहने में समर्थ नहीं है।"
इस प्रकार पात्रदान से मनोहर अपने पूर्वभव का श्रवण करके प्रिया सहित विद्याधर राजा अत्यन्त प्रसन्न हुआ। फिर मुनि के पास निधि के समान श्रावक व्रतों को ग्रहण किया। फिर मुनि को भक्तिभावपूर्वक नमस्कार करके वह विद्याधरपति अपने घर लौट आया। पात्रदान का उस प्रकार का फल जानकर वह हमेशा हर्षपूर्वक अपने न्यायोपार्जित धन को पात्र के आधीन करने लगा। वह विमान में बैठकर नन्दीश्वर द्वीपादि तीर्थों की अनेक पवित्र