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196/ श्री दान- प्रदीप
प्रकार की आधि-व्याधि का नाश हो जाता था। कौन बुद्धिमान योग्य वस्तु को सुपात्र को नहीं देता? फिर मूर्त्तिमान तीन पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ व काम) के समान तीन वस्तुओं से शोभित वह मंत्री अनुक्रम से मानो मूत्तिमान महोत्सव की तरह अपने घर पहुँचा ।
उधर उसी दिन उस पापबुद्धि राजा ने विचार किया - " मैंने मंत्री को धर्म की परीक्षा करने के लिए भेजा था, पर उसके समाचार भी नहीं है । अब मैं स्वयं ही धर्म की परीक्षा करूं। जिसकी प्रत्यक्ष परीक्षा की जाय, वही प्रमाण रूप होता है । यह रत्न जिसके पास जायगा, उसके कर्मानुसार ही मैं पुण्य और पाप के विषय में सुख का कारण स्वीकार करूंगा।"
ऐसा विचार करके राजा ने एक लाख मूल्यवाला एक रत्न गुप्त रूप से बीजोरे में छिपाकर उसे बाजार में बेचने के लिए दासी को दिया । वह दासी उस बीजोरे को लेकर शाकबाजार में आयी । उस समय मंत्री की स्त्री उस बाजार में आयी और उस बीजोरे को खरीदकर अपने घर ले गयी। जब उसने उस फल को काटा, तो उसमें से दैदीप्यमान कांतिवाला रत्न निकला । उसने वह रत्न मंत्री को दिया । पुण्यशालियों के पास बिना प्रयास के संपत्ति खींची चली आती है। राजा ने दासी के मुख से जाना कि वह रत्न मंत्री के घर पहुँच गया है। तब राजा ने विचार किया - " अहो ! धर्म का माहात्म्य अचिंत्य है !"
ऐसा विचार करके उसके मन में धर्म के प्रति कुछ श्रद्धा जगी। उधर मंत्री ने जिनपूजा करने के बाद भोजनादि किया। फिर विचार करने लगा - "राजा प्रत्यक्ष रूप से धर्म का फल देखे- ऐसा कुछ करूं।”
इस प्रकार की बुद्धि उत्पन्न होने से उसने कामकुम्भ के पास से मानो स्वर्ग से विमान उतरा हो - इस प्रकार का सप्तमंजिला स्वर्ण व रत्नों से निर्मित एक महल बनवाया । उसमें रात्रि में मनुष्यों के नेत्रों को स्तम्भित करनेवाला 32 प्रकार का नृत्य प्रारम्भ करवाया। उसे सुन-सुनकर राजा अत्यन्त आश्चर्यान्वित हुआ। वह विचार करने लगा - "क्या यह कोई इन्द्रजाल है? या कोई स्वप्न है? क्या स्वर्ग पृथ्वी पर उतर आया है?”
इत्यादि कल्पनाओं के जाल में राजा उलझ गया । अतः निद्रा का नाश हुआ। तीन प्रहर की रात्रि को राजा ने जागते-जागते एक करोड़ प्रहर की रात्रि के समान व्यतीत किया । प्रातःकाल होने पर राजा तैयार होकर जैसे ही मंत्री के घर वह सब कौतुक जानने के लिए जाने लगा, तभी मंत्री अपने महल की सारी माया समेटकर राजा के पास आ गया। राजा के सामने रत्नों से भरा हुआ थाल भेंट के रूप में रखा। राजा ने उस अद्भुत सम्पदा को देखा, तो आश्चर्यचकित होते हुए पूछा - "हे मंत्री ! ऐसी अद्भुत संपत्ति का उपार्जन तुमने किस प्रकार किया?"