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174/श्री दान-प्रदीप
दरवाजे बनवाये, प्रत्येक दरवाजे पर तोरण सहित केले के स्तम्भ बंधवाये, मार्ग में स्थान-स्थान पर कल्याणकारी मोतियों के स्वस्तिक बनवाये, कुमार से उत्पन्न कीर्ति का समूह हो इस प्रकार के ध्वज लगवाये, राजमार्ग पर चंदन और केसर का छिड़काव किया गया, वेश्याएँ दृष्टि में शीतलता उत्पन्न करनेवाला नृत्य करने लगीं, राजपुत्र के विशाल व उग्र पुण्य को मनुष्यों से कह रहे हों इस प्रकार मृदंग व वाद्यन्त्र उच्च स्वर में बजने लगे, सुहागिन स्त्रियाँ मधुर स्वर में धवल मंगल गाने लगीं और बन्दीजन स्फुट रीति से कुमार की बिरुदावलि गाने लगे। इस प्रकार अपार उत्सवों का आयोजन होने लगा। तब परिवार सहित कुमार पुरजनों को आश्चर्य उत्पन्न करता हुआ विमान से नीचे उतरा। फिर अपने महल में प्रवेश करके माता-पिता के चरणों में नमन किया। उन्होंने भी अत्यन्त आनन्द के साथ उसकी प्रशंसा करते हुए कहा-“हे वत्स! तेरी विरहाग्नि से उत्पन्न हुए जिस ताप का हमने निरन्तर अनुभव किया है, वह आज तेरे दर्शन रूपी अमृत के द्वारा नष्ट हो गया है। अब तूं अपना वृत्तान्त हमें बता।" ।
यह सुनकर कुमार ने विचार किया कि सत्पुरुष अपना नाम भी नहीं बताते, तो फिर मैं अपना वृत्तान्त किस प्रकार बताऊँ? फिर उसने भृकुटि की संज्ञा बताकर शुक को इशारा किया। तब शुक ने उसका सारा वृत्तान्त कहकर सुनाया। वृत्तान्त सुनकर राजा अत्यन्त प्रसन्न हुआ। अपने पुत्र को सर्व राज्य का भार उठाने में समर्थ जानकर राजा ने कहा-“हे वत्स! लोक में ख्यातिप्राप्त इस क्षमा (पृथ्वी) का मैंने अभी तक अच्छी तरह से पालन किया है। अब यह भार तुम पर डालने का विचार कर रहा हूं। सर्व प्रकार के सुख को प्रदान करनेवाली जो क्षमा (क्षान्ति) जिनागम में सुनी जाती है, वह अलग ही है। अतः हे निर्मल हृदयी! उसी क्षमा के भार को उठाने की अब मेरी इच्छा है। वह भार सर्वसंवर अर्थात् सर्वविरति के बिना वहन नहीं किया जा सकता। अतः अब तुम राज्य को अंगीकार करो और मैं सर्वविरति को अंगीकार करता हूं। शास्त्र में भी कहा है- माता-पिता को जिनभाषित धर्ममार्ग में प्रवर्तित कराने से सन्तान उनके उपकारों से उऋण हो सकता है, अन्यथा कभी उऋण नहीं हुआ जा सकता।
इस विषय में स्थानांग सूत्र में भी कहा है_ "इस संसार में तीन लोग 'दुष्प्रतिकार्य हैं-1. माता-पिता, 2. स्वामी और 3. धर्माचार्य । कितने ही भक्तिमान पुत्र माता-पिता का शतपाक व सहस्रपाक आदि तेल के द्वारा मालिश करके, सुगन्धित द्रव्यों के द्वारा उबटन करके, उष्ण जल के द्वारा स्नान करवाकर, सर्व अलंकारों के द्वारा विभूषित करवाकर, मनोहर 'स्थालीपाक के द्वारा शुद्ध किये हुए अठारह
1.जिनके उपकार का बदला न चुकाया जा सके। 2. पकाना।