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145/श्री दान-प्रदीप
बनाया हुआ चूर्ण डाल दिया। उस चूर्ण के प्रभाव से वन में लगे दावानल की तरह उसके शरीर में धीरे-धीरे महाव्याधि उत्पन्न हुई। शरीर में विस्तार को प्राप्त होती हुई उस महाव्याधि से उसका सारा शरीर अत्यन्त विरूप हो गया। राजा ने उसकी व्याधि के प्रतिकार के लिए जो-जो भी उपाय किये, वे सभी निष्फल हो गये। खलपुरुष के चित्त की तरह कोई भी उपाय उसके शरीर पर कारगर सिद्ध नहीं हुआ। कलंक से लज्जित होने की तरह शरीर से लज्जित होता हुआ कुमार किसी को भी अपना मुख नहीं दिखा सकता था। उस व्याधि के विषाद रूपी 'निषाद की संगति से मलिन हुआ माता-पिता को कहे बिना ही घर से निकल गया। मन में खिन्न होता हुआ और कर्मविपाक की विषमता का विचार करता हुआ कुमार एक ग्राम से दूसरे ग्राम में अटन करने लगा। इस तरह शुभकर्मों के उदय से वह एक दिन पूर्वदिशा की और चला और पाप का नाश करने के कारण रूप सम्मेतशिखर पर्वत के समीप पहुँच गया। वहां उसने किसी के मुख से कर्णों में अमृत रसायन के समान सम्मेत तीर्थ का माहात्म्य सुना कि-"इस पर्वत पर पाप का नाश करनेवाले श्रीअजितनाथ भगवानादि बीस तीर्थंकरों ने अपने परिवार के साथ मुक्ति को प्राप्त किया है। अतः देवेन्द्रों ने यहां भक्तिवश उनके मणिमय बीस स्थूभों की रचना की है। उनमें उन-उन अरिहन्तों की रत्नमय प्रतिमा स्थापित की हुई है। उन स्थूभों में रहे हुए तीर्थंकरों को शुद्ध बुद्धियुक्त जो पुरुष भक्ति से नमस्कार करता है, वह अवश्य ही जल्दी मुक्ति को प्राप्त करता है-ऐसा पण्डितों ने कहा है।"
इस प्रकार से उसका माहात्म्य सुनकर पुण्यात्मा कुमार श्रीजिनेश्वरों को नमस्कार करने के लिए उद्यमवन्त हुआ। हर्षित मन से वह ऊपर चढ़ा। वहां बावड़ी में स्नान करके शुद्ध श्वेत वस्त्र धारण करके सर्वऋतु के पुष्पों से युक्त उद्यान में से पुष्पों का समूह ग्रहण करके कृत्य के ज्ञाता कुमार ने प्रत्येक स्थूभ की तीन-तीन बार प्रदक्षिणा की। फिर विधियुक्त जगतपूज्य बीस तीर्थंकरों की पूजा की। उसके बाद भक्तियुक्त भावस्तव इस प्रकार करने लगा-“हे अजित जिनेश्वर! आप जयवंत वत्तें । हे संभवनाथ! आप समृद्धि के लिए हों। हे अभिनन्दन स्वामी! आप आनन्दप्रदाता बनो। हे सुमतिनाथ! आप मुझे सन्मति प्रदान करें। हे पद्मप्रभ! आप मुझे कांति प्रदान करें। हे सुपार्श्वस्वामी! मेरे सम्मुख दृष्टि करो। हे चन्द्रप्रभस्वामी! आप चिरकाल जयवंता विचरें। हे सुविधिस्वामी! मेरी सहायता करें। हे शीतलनाथस्वामी! मेरी प्रीति के लिए हों। हे श्रेयांस प्रभु! मेरा कल्याण करो। हे विमलनाथ प्रभु! मेरे पापों का नाश करो। हे अनंतस्वामी! मुझे अनंत सम्पदा (मोक्ष) प्राप्त करवाओ। हे धर्मनाथस्वामी! मेरा नमस्कार स्वीकार करो। हे शांतिनाथस्वामी! आप मेरी शांति के लिए
1. चाण्डाल।