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92/श्री दान-प्रदीप
में उड़ गया। जैसे एक अक्षर से हीन विद्या सफल नहीं हो पायी, वैसे ही प्रमाण में हीन वर्णादिवाला श्रुत भी इष्ट-सिद्धि प्रदान नहीं कर सकता। अतः बुद्धिधन से युक्त पुरुषों को श्रुत का अभ्यास करना चाहिए और वह वर्णादि की अपेक्षा शुद्ध होना चाहिए, क्योंकि औषधादि की तरह न्यूनाधिकता से रहित श्रुत पथ्य रूप होता है अर्थात् हितकारी होता है। __अर्थ-विवेकी पुरुष को श्रुत का अर्थ यथार्थ रूप से करना चाहिए। अगर श्रुत की व्याख्या अन्यथा की गयी, तो वह असंख्य दुःखों की प्रदाता होती है। असत्य व्याख्या करनेवाला मात्र अपना ही भवभ्रमण नहीं बढ़ाता, बल्कि अपनी संतति अर्थात् पुत्र –पौत्रादि अथवा शिष्यों-प्रशिष्यों को भी अनंत भवभ्रमण करवाने का कारण बनता है। कहा भी है
जह सरणमुवगयाणं, जीवाण निकितई सिरे जो उ। एवं आयरिओऽविहु, उस्सुत्तं पन्नवितो अ।।
अर्थ-जैसे कोई पुरुष अपनी शरण में आये हुए जीव के मस्तक का छेद करता है, तो उसे जितना पाप लगता है, उतना ही उत्सूत्र की प्ररूपणा करनेवाले आचार्य को भी लगता है। वह अपनी शरण में आये हुए जीवों-साधुओं को गलत उपदेश देकर उनकी दुर्गति का हेतु बनता है।
जो गुरु सिद्धान्तों के अर्थ का अन्यथा कथन करता है, उसका जप, तप, ज्ञान, सत्क्रियादि सभी निष्फल बनते हैं। शास्त्रों में सुना जाता है कि जमालि सत्क्रिया और सद्ज्ञान से युक्त था। फिर भी अरिहन्त भगवन्त के एक ही वचन की मिथ्या प्ररूपणा के द्वारा वह दुर्गति को प्राप्त हुआ। दूसरों के वचनों का मिथ्या अर्थ करने से भी नरकादि दुर्गति की प्राप्ति होती है, तो जगत को पवित्र करनेवाले जिनेश्वर भगवान के वचनों का अन्यथा अर्थ करने से तो दुर्गति की प्राप्ति का कहना ही क्या? इस विषय में वसु और पर्वत की कथा सुनो
इस भरतक्षेत्र में लक्ष्मी द्वारा समृद्धिशाली शुक्तिमती नामक नगरी थी। उसमें अभिचन्द्र नामक राजा राज्य करता था। वह युद्धकार्य में आलस-रहित था और उसके चरणों में सभी राजा भक्तिनत होकर नमस्कार करते थे। उस राजा के वसु नामक महा-बुद्धिमान पुत्र उत्पन्न हुआ। वह बाल्यावस्था से ही सत्य वचन बोला करता था।
उसी नगरी में सर्व विद्या से संपन्न निर्मल बुद्धियुक्त क्षीरकदम्बक नामक उपाध्याय थे। उनके पर्वतक नामक पुत्र था। उन उपाध्याय के पास वसु, पर्वतक और एक विदेशी नारद नामक छात्र-तीनों शुद्ध मन से उत्कण्ठापूर्वक विद्याभ्यास करते थे। ___ एक रात्रि को भवन के ऊपरी भाग में वे तीनों अध्ययन कर रहे थे। अध्ययन