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आव्यां छे. पहेला प्रकरणमां भांगानी संख्या जाणवानी रोत, बीजामां प्रस्तार लखवानी रोत अने त्रीजामां प्रस्तारना आद्यंक अंत्य अंक शोधक मेरुविधि बतावेल छे.
एकंदर चार ग्रंथोना ९+६+५+३ = २३ त्रेवीश प्रकरणोथी आ ग्रंथ समाप्त थाय छे.
चारे ग्रंथोमां भांगाना प्रस्तार ए मुख्य वस्तु छे तेथी चारेना संग्रहनुं नाम ' प्रस्तार रत्नावलि' एवं राखवामां आव्युं छे. आमां दर्शावेल रोत प्रमाणे जेटला प्रस्तार बनाववा होय अने तेमां जेटलो समय गाळवो होय तेटलो गाळी शकाय, एटले सामायिक पौषध के संवरना समयमां मननी एकाग्रता साधवी होय अने वृत्तिओने स्थिर करवी होय त्यारे आ गणित बहु उपयोगी थई पडवाना संभव छे जेथी एकाग्रता इच्छनारे खास करीने आना अभ्यास करवो जोईए.
साधवा
पिंगल शास्त्रमां पण छंदना प्रस्तार, नष्ट, उद्दिष्ट, मेरु, पताका, मर्कटी वगेरे दर्शावेल छे तेनी रचना केटलेक अंशे आने मलती छे.
लीलावती गणितमां पण एक स्थले आवा भांगानी थोडी हकीकत छे. पण भांगाना प्रस्तार संबंधी जैन साहित्यमां जेटलो विस्तार छे तेटलो बीजे जोवामां नथी आवतो. आ उपरांत बीजा पण वर्णगंध रस अने स्पर्शना भांगा, चरम अचरमना भांगा, क्रोध मान माया अने लोभना भांगा, सप्रदेशी अप्रदेशीना एम अनेक भांगाओनी रचना जैनसूत्रोमां छे. उक्तग्रंथना अभ्यासथी आ सघळा भांगाओनी रचना जाणवी बहु सरल थइ पडे छे. एटला माटे जिज्ञासुओना हितार्थे आ ग्रंथ योजवामां आव्यो छे.
आ ग्रंथना गणित विभागमां प्रस्तार यंत्रो वगेरेना आंकडा तपासवामां मुनिश्री खुशालचंद्रजीए घणी सहायता करी छे तेथी तेना आभार मानवामां आवे छे.
शांन्तिः
ॐ शांन्तिः संवत् १९८० पोष शुकल पूर्णिमा.
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शांन्तिः मुनिश्री रत्नचंद्र