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चतुर्विधदाननिरूपण
इतनाही नहीं आगेके भव में वह देवगति में जाकर जन्म लेता है अथवा सर्व राजावोंके द्वारा पूज्य चक्रवती होकर जन्म लेता है ॥६॥
त्यक्तास्त्रं प्रपलायितं गिरिगजारूढं जलांतर्गतं । दष्टात्मांगुलितांतवार्जुनमुदस्तोच्चध्वजं त्वद्गतिं ॥ दैन्योक्तिं प्रणतं विमुक्तविरुदं दत्तात्मपृष्ठं रिपो
भृत्यं देशगतं तदप्यभयदानाख्यं सुरक्षन्गुणः ॥ ७ ॥ अर्थ-जिस शत्रुराजाने युद्धस्थानमें शस्त्रको छोड दिया हो, जो' भाग गया हो, पहाड वगैरह में डरसे चढ गया हो, जल में घुस गया हो, शरण में आकर पादमें गिरता हो, अपने छत्र वगैरहको समेट लिया हो, आपही गति हैं ऐसा कहता हो, दीनतासे युक्त वचन बोलता हो, नमस्कार किया हो, अपने पदवी वगैरहको छोड चुका हो, एवं जो पाठ दिखाता हो उसकी रक्षा करनी चाहिये, शत्रुके सेवककी भी रक्षा करनी चाहिये यह भी अभयदान है ॥ ७ ॥
दत्वा स्वार्थान्चलं राज्ञे दयते सागसः शिरः। ..
तदेवाभयदानं स्यात् पुण्याय कुरुते सदा ॥ ८॥ अर्थ--एक अपराधी राजाके द्वारा प्राणदण्डसे दण्डित किया जारहा हो, उस अवस्था में अपने परिवार, धन एवं सर्वस्व देकर भी उस अपराधी का प्राण बचाना यह भी अभयदान है, इससे पुण्य की वृद्धि होती है ॥ ८ ॥
स्वदेशपुरगेहस्थान्येऽवंति प्रमुदा सुखं । . नाघानि नारयस्तेषां हानि वति तानयः ॥९॥ ___ अर्थ--जो अपने घर, नगर, देशमें रहनेवाले प्राणियोंको बहुत हर्षसे रक्षा करते हैं, उनको सुख पहुंचाते हैं ऐसे अभय दानियोंको पाप पीडा नहीं देता है और न उनको कोई शत्रु है, उनके कोई