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पानशालनम्
अर्थ-किसी २ दोषको अनुकंपा ही दूर कर देती है, किसीकी शुद्धि गईणासे होती है, किसी दोषकी शुद्धि अपने गुरुके द्वारा दिए दुए व्रत के पालनसे होती है । दोषके तारतम्यसे झुद्धिविधानमें भी तारतम्य है। . यदि अल्पदोष दुआ तो व्यस्त्र ब अधिक दोष हुआ तो समस्त शुद्धिविधानं भेदोंका उपयोग करना चाहिये ॥ १२३ ।।
शाकेऽब्दे त्रियुगाग्निशीतगुयुतेऽतीते विषावत्सरे । माघे मासि च शुक्लपक्षदशमे श्रीवासुपूज्यर्षिमा ॥ प्रोक्तं पावनदानशासनमिदं ज्ञात्वा हितं कुर्वतां ।
दानं स्वर्णपरीक्षका इव सदा पात्रत्रये धार्मिकाः॥१२४॥ अर्थ-श्री वासुपूज्यऋषिने यह दानशासन नामका पवित्र शास्त्र शालिवाहन शक १३४३ विषु संवत्सरके माघ शुद्ध दशमाके दिन रचा है। इस अंथका अभिप्राय जानकर भव्यजीव अपना हित करें। सुवर्ण परीक्षक जैसे सच्चा सोना ग्रहण करते हैं उसी तरह धार्मिक लोग इस ग्रंथसे ज्ञान प्राप्त कर तीन प्रकारके सत्पात्रोंको दान देवे व अपना हित करें ॥ १२४ ॥
9 भद्रं भूयात् ।
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