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दानशासनम्
. अर्थ-जिनमुनियोंकी चिकित्सामें प्रवीण वैद्यको जानना चाहिये कि प्रातःकाल लिया हुआ औषध जिनका कोष्ठ, अग्नि व देहकी शक्ति विशिष्ट हो उनके समस्त रोगोंको नाश करता है, भोजनसे पहिले लिया हुआ औषध शीघ्र भोजनको पचाता है व सुखकर है। भोजनके बाद लिया हुआ औषध बादमें आनेवाले सर्व रोगोंको दूर करता है । भोजनके बीचमें लिया हुआ औषध कोष्ठमध्यमें स्थित अनेक रोगोंको दूर करता है ॥ ८॥ .
अंतरभक्तादिफल आंतरभक्तमौषधमथानिकरं परिपीयते तथा । मध्यगते दिनस्य नियतोभयकालमुभोजनांतरे ॥ औषधरोषिबालकृशवृद्धजने सहसिद्धमौषधै- ।
यमिहाशनं तदुदितं स्वगुणैश्च सभक्तनामकं ॥ ९ ॥ अर्थ-अंतरभक्त उसे कहते हैं जो सुबह शामके नियत भोजनके बीच ऐसे दिनके मध्यसमयमें सेवन किया जाता है । यह अंतरभक्त अग्निको अत्यंत दीपन करनेवाला, [ हृदय-मनको शक्ति देनेवाला पथ्य ] होता है । जो औषधोसे साधित [ काथ आदिसे तैयार किया गया या भोजनके साथ पकाया हुआ ] आहारका उपयोग किया जाता है उसे सभक्त कहते हैं । इसे औषधद्वेषियोंको [ दवासे नफरत करनेवालोंको ] व बालक, कृश, वृद्ध, स्त्रीजनोंको देना चाहिये।॥९॥
भोजनसमय विण्मूत्रे च विनिर्गते विचलिते वायौ शरीरे लघौ । शुद्धेऽपींद्रियवाङ्मनःसुशिथिले कुक्षौ श्रमव्याकुले ॥ कांक्षामप्यशनं प्रति प्रतिदिनं ज्ञात्वा सदा देहिना- । माहारं विदधीत शास्त्रविधिना वक्ष्यामि युक्तिक्रमं ॥१०॥ अर्थ-जिस समय शरीरसे मलमूत्र का ठीक २ निर्गमन हो, अपानवायु भी बाहर छूटता हो, शरीर भी लघु हो, पांचों इंद्रिय