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दानशासनम्
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पृष्ठ श्लोक १८२ निष्फलद्रव्य
२६२ २२२ ४८३ देवादिद्रव्यहरण फल
२६२ २२३ ४८४ स्मरणकर न देनेकाफल
२६३ २२१-२५ ४८५ लिखितादत्तदानफल
२६३ २२६ ४८६ वचन देकर न देनेका फल
२६३ २२७ ४८७ मर्यादा के भीतर न देना
२६४ २२८ १८८ अयोग्यधनग्रहणफल
२६४ २२९ ४८९ उन्ही के किंकर बनते हैं
२६१ २३० ४९. विचारकर या वचन देकर न देने का फल २६४ २३१ ४९१ पुण्यपापभेद
२६५ २३२ ४९२ दातावोंकी शक्ति देखकर याचना करें २६५ २३३-३४ ४९३ दाता के प्रति क्रोध नहीं करनेका उपदेश २६६ २३५ ४९४ सफलजीवन
२६६ २३६-३७ ४९५ प्रसादलक्षण
२६६ २३८ ४९६ पुण्यात्माओंकी वृत्ति
२६७ २३९-४० १९७ देव व ऋषिसेवाफल
२६८ २४१ १९८ देव व गुरु आदि के प्रति दुर्वचननिषेध २६८ २४२ ४९९ अन्योंसे द्वेष करनेका निषेध
२६८ २४३ ५०० अन्यस्त्री गुणरक्षण
२६९ २४४ ५०१ पापरतोंको सुख नहीं मिलता है २६९ २४५ ५०२ केवल्यादिकी निंदाका निषेध
२६९ २४६ ५०३ देवगुरुके प्रति विघ्न न करने का उपदेश २७० २४७ ५०१ विधिकी विचित्रता
. २७१ २४८ ५०५ धर्म कार्य में विघ्न न करने का उपदेश २७१-७३ २१९.५३ ५०६ उपसंहार
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