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दानशासनम्
Mr.RamRAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA
गायक, माली, कुंभार, नाई, कारु+ कोळी, स्तुतिपाठक, नट, कहार इनके घरमें वा इन वृत्तियोंको धारण करनेवालोंके घरमें भोजन म करें । इसी प्रकार तेली, वृद्धि क्षय सूतकवाले और कोतवालके यहां भी भोजन न करें ॥ ३८ ॥
दाननिषेध भूगोवाजीभकन्याघनकनकविभूषांशुकामत्रदानं । हिंसादानं च सर्व भवसुखकरणं वृष्टितोयं यथा स्यात् ॥ पात्रेष्वेतेषु तस्माद्विरचितममलं चान्नदानं प्रधानं । पात्रेष्वेतस्य दानं रचयति स नरः पंडितः खंडिताधः॥३९ अर्थ-बुद्धिमान दाताको उचित है कि वह पात्रोंके लिए भूमि, गाय, घोडा, हाथी, कन्या, धन, कनक, आभरण, वस्त्र, शरीरोपभोगी पदार्थ, हिंसाके साधक उपकरण, आदि का दान न करें। क्यों कि इन पदार्थोके दान करनेसे संसारकी ही वृद्धि होती है। जिस प्रकार कि बरसातके पानीसे एकेंद्रिय घास आदिकी उत्पत्ति, वृद्धि व संरक्षण होता है, उसी प्रकार इन पदार्थोसे संसारकी ही वृद्धि होती है । इसलिए जो व्यक्ति इन बातोंको समझकर पात्रोंके लिए उपयोगी प्रधान अन्नदानका प्रदान करता है, वह सचमुच में पंडित है' व · पापोंको खंडित कर सकता है। क्यों कि अन्नदान के फलको शास्त्रकारोंने बहुत ही अधिक बतलाया है ॥ ३९ ॥
+ शालिको मालिकश्चैव कुंभकारस्तिलंतुदः नापितश्चेति पंचैते भवंति स्पृट्यकारुकाः ॥ रजकस्तक्षकश्चैवायस्कारो लोहकारकः । स्वर्णकारश्च पंचते भवंत्यस्पृश्यकारुकाः ||