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दामशासनम्
६८ जीव पालने से [रक्षणसे ] होनेवाले लाभ ६९ दूसरे जीवोंको कष्ट देना पाप है ७० विघ्न उपस्थित न करनेका उपदेश ७१ उत्तम श्रावकों की रक्षा करनी चाहिये
७२ धर्मप्रभावनाका फल
७३ जिनमहोत्सबमें सब देशोंसे जैन बंधुओंको
बुलाने का उपदेश
७४ जिनपूजनमें वीरके समान रहें
७५ भावपूर्वक चैत्यालय जानेका फळ
७६ जाप देने का फल
पृष्ठ लोक ३२-३३२६-२७
८७ पुण्योत्पादक कार्य करनेका उपदेश
८८ ककडी के समान धर्मका फल मीठा होता है
८९ भव्य जिनपूजन से अपनेको धन्य मानते हैं ९० कोई मेंढक के समान संसार में सुख मानते हैं ९१ धर्मप्रभावफल
३३
२८
३३ २९
३३ ३०
३४-३५ ३१-३३
३५ ३४
३६-३७ ३६-३८
३७-३८३९-४०
३८
३८
४२
३९
४३
७७ भटों के समान चतुः संघका सत्कार करना चाहिये ७८ विश्नोंको दूर करनेवाला त्रिलोकमान्य होता है ७९ वैद्यादि के समान धर्मोत्सव में प्रवृत्तिका उपदेश ८० शांति से कर्म जीतनेका उपदेश
३९ ४४
३९
४५
४०
४६
८१ जिनपूजोत्सबके लिए कौन योग्य है ! ८२ पूजाके भेद
४० ४७-४८
८३ संतोषपूर्वक पूजा करनी चाहिये
४१
४९
८४ जिनपूजन करनेवाले निर्मलपुण्यका संचय करते हैं ४१
५०
८५ जिनपूजा को रोकना पाप है
४२
८६ पापत्या गोपदेश
४२
४१
५१
५२
५३
५४
४२
४३
४३ ५५-५६
४३ ५७
४३
५८