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निशासनम्
अर्थ - - दूसरे देश से पीडित होकर आये हुए वीर भटोंको, वीर राजावोको, • चिकित्सा प्रवीण वैद्योंको, ज्योतिषियोंको, एवं और भी मनुष्यों को अपने राज्यसे मारकर एवं उनके धन अपहरण करते हुए उनके चित्तमें संक्लेश उत्पन्न कर इतनाही नहीं उनको अनेक प्रकार से धिक्कार देकर निकालता है वह राजा अत्यंत पापी है 1 अनंत गुणों को देनेवाला अभयदान उसका नष्ट होता है । उसके आयुका क्षय होता है, वंशसंपत्ति इत्यादि सबका क्षय होता है ॥ १०९ ॥
विघ्नस्त्वभयदानस्य शत्रुपातितसालवत् ।
तटाक भेदवन्मुख्यमस्त्रक्षतद्भवेत् ॥ ११० ॥ अर्थ - - अभयदान में विघ्न डालनेका फल इस प्रकार दुःख देता है कि जैसे कोई किलेको शत्रु आकर घेरे, अथवा भरा हुआ तालाब फूटे उस प्रकार अथवा मर्मस्थान में लगा हुआ अस्त्र के समान, अर्थात् अभयदान में विरोध करनेसे महान् दुःख प्राप्त होते हैं ॥ ११० ॥ स्वर्गानवितुं ददासि रिपवे गात्रं स्वयं भूषया । न्यूनं जातमशेषमेकविलये भृत्यप्रजानां न सः ॥ नाशं वेत्सि जिनोत्सवस्यै कुरुषे किं जुनमेतेन ते । स्वस्थानत्रयवर्जनं तव त्रिवर्षाभ्यंतरे स्याध्वं ॥ १११ ॥ अर्थ – हे राजन् ! तुम तुझारे राज्य, तुहारे नगर में स्थित सेवक बगैरह की शत्रुत्रोंसे रक्षा करने के लिए अपने प्राणोंतकको देनेके लिए तैयार होजाते हो, एवं अपने परिवार के नष्ट होनेपर सब कुछ नष्ट हुआ ऐसा समझते हो ऐसी अवस्था में जिनोत्सव आदि में विघ्न आनेपर उसको दूर करनेका कार्य तुह्मारा नहीं है ? | उसमें न्यूनता आनेसे तुलारे कार्य में न्यूनता नहीं है ? धर्ममें हानि होनेपर तुममें व तुम्हारे राज्य में हानि होती नहीं क्या ? धर्ममें हानि पहुंचनेपर तीन वर्षके अंदर ही तुझारे राज्य नगर देशके परिवारका नाश होगा । इसलिए