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________________ से हिंसा का त्यागकर अहिंसा का पालन करना यह श्रमण आचारों का प्रथम स्थान कहा है। ___ब्रह्मचर्य का वास्तविक अर्थब्रह्म अर्थात् आत्मा उसके स्वरूप में रमणता ऐसा, और व्यवहार से मैथुन छोड़कर वीर्य की रक्षा करनी ऐसा होता है। तीनोंजगत में ब्रह्मचर्य का महत्त्व सर्वाधिक रहा है। देवों को भी असाध्य है, दैवीशक्ति न कर सके वैसे दुष्कर कार्य ब्रह्मचारी मनुष्य कर सकता है। आत्मा के छोटे-बड़े सभी गुणों का विकास ब्रह्मचर्य से होता है। उसका पालन दुष्कर-अति दुष्कर होने से सभी व्रतों में मुख्य माना मनुष्य की ही मुक्ति हो सकती है। कारण कि ब्रह्मचर्य का यथार्थ पालन मनुष्य ही कर सकता है। इस शक्ति के कारण ही ज्ञानियों ने मनुष्य को मुक्ति की साधना का उपदेश किया है। ब्रह्मचर्य द्वारा वीर्य रक्षा एवं भाव रक्षा किये बिना शेष स्थानों का पालन . दुःशक्य है। वीर्य एवं भाव मनुष्य की सर्वदेशीय शक्ति है। वीर्य को धातु भी कहा है। जैसे 'गम् रम् नम्' आदि धातुओं से शब्द बनता है, स्वर्ण-ताम्र आदि धातु से सभी संपतियों का सर्जन हो सकता है, वैसे शरीरकी विविध शक्तियों का मूल वीर्य नाम की धातु है। वीर्य से उष्णता, प्रकाश, बीजली, आकर्षण आदि शक्तियाँ प्रकाशित होती हैं। उससे जगत के स्थूल-सूक्ष्म सृजन होते हैं। वीर्य से शरीरबल, उसमें से मनोबल, उसमें से बुद्धि और बुद्धि से आत्म बल प्रकट होता है। वस्तुतः मैथुन सेवन से विकार कम नहीं होता। पर वीर्य रक्षा से प्रकटित सत्त्वगुण से अनादि वासना पर विजय प्राप्त की जा सकती है। मनुष्य जैसे-जैसे क्षीण वीर्य होता है वैसे-वैसे पांचों इंद्रियों की वासना बढ़ती है और प्रकृति पर की पकड़ छूटती है। कोई उन्मादी पागल भी बनता है,कोई मौत के वशीभूत होता है। ब्रह्मचर्य से वीर्य रक्षा करने वाले योगी का सत्त्व खीलता है। उससे काया-वचन एवं मन पर काबू प्राप्तकर उसके द्वारा क्रमशः सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र को विकसित करते हुए यावत् मुक्ति सुख को भी प्राप्त करता है। मन पर विजय प्राप्त करना यही भाव रक्षा है। ___ वीर्य रक्षण के साथ उसकी शुद्धि के लिए आहार भी निर्दोष, अहिंसक और पवित्र चाहिए। अतः जैन साधुकी भिक्षा की विधि सभी से विशिष्ट-निर्दोष अहिंसक कही है। आहार शुद्धि न हो तो ब्रह्मचर्य से वीर्यरक्षा करते हुए भी उस वीर्य से कामक्रोधादि के आधिन होकर ब्रह्मचर्य का नाश करता है। अतिशयोक्ति के बिना ऐसा कहा जा सकता है कि आशाओं एवं इच्छाओं पर विजय पाने हेतु ब्रह्मचर्य एक अमोघ और सर्वश्रेष्ठ उपाय है। कर्म साहित्य में वीर्यान्तराय नाम का कर्म माना है। उसके क्षयोपशमादि ब्रह्मचर्य श्रामण्य नवनीत ५४
SR No.022004
Book TitleSramanya Navneet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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