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________________ छठा गुणस्थान. (७५) ~~~~~~~~~~~~ कुमार, द्वीप कुमार, उदधि कुमार, दिशा कुमार, वायु कुमार, और स्तनित कुमार । ये दश प्रकारके भुवनपति देवता होते हैं। बाणव्यन्तर आठ प्रकारके होते हैं, किंनर, किंपुरुष, महोरग, गंधर्व, यक्ष, राक्षस, भूत, पिशाच, ये आठ प्रकारके वाणव्यन्तर देवता कहे जाते हैं । ज्योतिषि देव पाँच प्रकारके होते हैं, चन्द्र, सूर्य, प्रह, नक्षत्र, तारा, ये पाँच ज्योतिषि देव समझना । वैमानिक देवता दो प्रकारके होते हैं। एक तो कल्पवासी और दूसरे कल्पातीत, कल्पवासी देवता, सौधर्म देवलोक, ईशान देवलोक, सनतकुमार देवलोक, माहेन्द्र देवलोक, ब्रह्म देवलोक, लान्तक देवलोक, महासुक्र देवलोक, सहस्रार देवलोक, आनत देवलोक, प्राणत देवलोक, आरण्य देवलोक तथा अच्युत देवलोक । एवं बारह देवलोक स्थानों में पैदा होते हैं । कल्पातीत देवताओंमें भी दो भेद होते हैं-एक तो ग्रैवेयक निवासी और दूसरे अनुत्तरवासी। अवेयक निवासी नव प्रकारके होते हैं-भद्र, सुभद्र, सुजात, सौमनस्य, प्रियदर्शन, सुदर्शन, अमोघ, सुप्रतिबद्ध और यशोधर, एवं इन नव स्थानोंमें अवेयक देवता उत्पन्न होते हैं। अब रहे अनुत्तरवासी, सो पाँच प्रकारके होते हैं, विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध, इन पाँच स्थानोंमें अनुत्तर कल्पातीत देवता पैदा होते हैं । ये पाँच अनुत्तरवासिदेव अवश्य सम्यग्दृष्टी ही होते हैं और दो तीन भवके अन्दर ही सिद्धि गतिको प्राप्त करते हैं। अन्तिम सर्वार्थसिद्ध विमानवासी देवता तो अवश्यमेव अगले भवमें ही मोक्ष पद प्राप्त करते हैं । इस प्रकार ये चार गति संसारिजीवोंके लिए अनादि अनन्त हैं। कितने एक विद्वान मोक्षको पाँचवीं गति तया कथन करते हैं, किन्तु जब जीवात्मा मोक्ष गतिको प्राप्त कर लेती है
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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