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________________ छठा गुणस्थान. ज्ञानार्णव ॥ अर्थ-मनुष्योंके हृदयमें जो प्रतिदिन चोरी करनेके विचार पैदा होते हैं और चोरी करके पश्चात् वे अत्यन्त हर्षित होते हैं, दूसरोंसे चोरी कराकर लाभ उठानेकी इच्छा करते हैं, इस सबको पंडित पुरुषोंने चोरी जन्य रौद्र ध्यान कहा है। तृष्णारूप जालमें फसा हुआ जीव तमाम संसारकी धन संपत्तिका मालिक बनना चाहता है, मगर पूर्व भवमें इतना पुण्य न करनेसे उन वस्तु ओंका स्वामी नहीं बन सकता। पूर्वकृत पापकर्मके उदयसे प्रमादी आलसु दरिद्री बेकार होकर विना ही परिश्रमके धन इकट्ठा करनेकी इच्छाको पूर्ण करनेका मन होनेसे चोरीके सिवाय उसे अन्य कोई उपाय नहीं सूझता, बस इसी कारण वह चौर्यानुबन्धि रौद्र ध्यानमें अधिकाधिक प्रवृत्त होता जाता है । उस समय चोरी द्वारा धन प्राप्त करनेके लिये उसके अन्तःकरणमें जो संकल्प विकल्प जन्य विचार पैदा होते हैं सो नीचे भुजब समझना। ___ आज घोर अँधेरी रात्रिमें काले वस्त्र पहन कर अमुक धनीरामके घर जाकर चुप चाप ताला तोड़के सन्दकमेंसे धन निकाल कर लाऊँगा, किसकी ताकत है जो मुझे रोक सके या मेरे सामने आवे?। शस्त्र विद्यामें तो मैं ऐसा हुशियार हूँ कि एक दफाके वारसे ही कई मनुष्योंको पछाड़ डालूँ और भागनेमें भी मैं ऐसा हुशियार हूँ कि किसकी मॉने सवा सेर सुंठ खाई है जो मुझे पकड़ सके ?। ऐसी औषधियां और अंजन मेरे पास हैं कि जिससे घोर अन्धकारमें भी मैं दिनके समान जा सकता हूँ। अमुक विधाके प्रभाव से मैं गुप्त दबे हुए धनको भी भली भाँति जान सकता हूँ। इस तरह विद्याओंमें तो मैं प्रवीण ही हूँ, इसके अलावे मेरे पक्षमें बड़े बड़े हुशियार तथा दक्ष मनुष्य हैं और हैं भी घने,
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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